________________
२३०
योग, भूतिकर्म आदि का प्रयोग करता है । माई विकुव्वइ, नो अमाई विकुव्वइ ।
मारणान्तिक आराधना
योगसंग्रह का एक प्रकार। वह आराधना, जो मृत्यु के आसन्न काल में की जाती है ।
'आराहणा य मरणंते' त्ति आराधना 'मरणान्ते' मरणरूपोऽन्तो (सम ३२.१.५ वृ प ५५ )
मरणान्तः ।
(भग ३.१९० )
मारणान्तिक उदय
योगसंग्रह का एक प्रकार । मारणान्तिक वेदना का उदय होने पर भी क्षुब्ध न होना, शान्त और प्रसन्न रहना । 'उदए मारणंतिए' त्ति मारणान्तिकेऽपि वेदनोदये न क्षोभः कार्यः । (सम ३२.१.४ वृ प ५५ )
मारणान्तिक समुद्घात मृत्यु से पूर्व अन्तर्मुहूर्त्त की कालावधि में आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकल आगामी उत्पत्तिस्थान तक फैलना । मारणान्तिकसमुद्घातोऽन्तर्मुहूर्त्तशेषायुष्ककर्माश्रयो जीवप्रदेशान् शरीराद्बहिर्निष्काश्य । (सम ७.२ वृप १२)
मारुतचारण
(त्रि १०४७)
(द्र वायुचारण)
मारुती धारणा
पिण्डस्थ ध्यान का एक प्रकार, जिसमें साधक यह अनुभव करता है कि नाभिकमल में दोषों के जलने से निष्पन्न हुई भस्म को तेज हवा का झौंका उड़ाकर ले जा रहा है, चेतना निर्मल हो रही है।
(मनो ४.२० ) दग्धमलापनयनाय चिन्तनं मारुती । ततस्त्रिभुवनाभोगं पूरयन्तं समीरणम् । चलयन्तं गिरीनब्धीन् क्षोभयन्तं विचिन्तयेत् ॥ तच्च भस्मरजस्तेन शीघ्रमुद्धूय वायुना । दृढाभ्यासः प्रशान्तिं, तमानयेदिति मारुती ॥
(योशा ७.१९,२०)
Jain Education International
(द्र आग्नेयी धारणा )
मार्गणा
१. ईहा की दूसरी अवस्था, जिसमें विशेष अर्थ के अन्वयधर्म
और व्यतिरेकधर्म का समालोचन होता है।
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
तस्सेव विसेसत्थस्सा अण्णय-वइरेगधम्मसमालोयणं मग्गणा भण्णति । (नन्दी ४५ चू पृ ३६)
२. अन्वयधर्म का अन्वेषण करना । मार्गणमन्वयधर्मान्वेषणं मार्गणा ।
(विभा ३९६ वृ)
मार्गाच्यवन
रत्नत्रय की साधना में संलग्न रहना श्रद्धान, स्वाध्याय और चारित्र में जागरूक रहना ।
मार्गो-रत्नत्रयं मुक्तेः पन्थाः तस्मादच्यवनम् - अप्रच्यवनमनपेतत्वम् । तदिति मार्गस्य सम्बन्धः, तस्यानुष्ठानंश्रद्धानं स्वाध्यायक्रिया चरणम् ।
(तभा ९.७ वृ)
मार्दव धर्म
श्रमणधर्म अथवा उत्तमधर्म का एक प्रकार । जाति, कुल, ऐश्वर्य, बुद्धि, श्रुत आदि के आवेशवश होने वाले अभिमान को छोड़ देना । जात्यादिमदावेशादभिमानाभावो मार्दवम् ।
(ससि ९.६ )
मालापहृत
उद्गम का एक दोष । निसैनी आदि के द्वारा मचान, स्तम्भ या प्रासाद पर चढ़कर अथवा भूगृह में उतर कर लाई गई तथा छींके से उतारी हुई वस्तु मुनि को देना । यदुपरिभूमिकातः शिक्यादेर्भूमिगृहाद्वा आकृष्य साधुभ्यो दानं तन्मालापहृतम् । ( योशा १.३८ वृ पृ १३४)
मासकल्प
वर्षावास के अतिरिक्त शेष काल में एक क्षेत्र में मुनि के निवास की उत्कृष्ट अवधि |
एकत्र मासावस्थितिरूपे समाचारे ।
(बृभा २०३५ वृ)
मासक्षपण
मासखमण । वह तप, जिसकी अवधि एक मास है । पक्षद्वयात्मकमासपर्यन्ते निराहारे ।
For Private & Personal Use Only
(क ३.५ वृ)
माहन
१. वह मुनि, जो प्रेय, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति (रतिअरति), मायामृषा और मिथ्यादर्शन शल्य से विरत है ।
इतिविरतसव्वपावकम्मे पेज्ज- दोस- कलह अब्भक्खाणपेसुण्ण- परपरिवाद - अरतिरति मायामोस-मिच्छादंसण
www.jainelibrary.org