Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 296
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश अणुव्रतों को राजाभियोग आदि आकारों (अपवादों) से मुक्त रूप में स्वीकार करता है । अणुव्रतानि - स्थूलप्राणातिपातविरमणादीनि उपलक्षणत्वात् गुणव्रतानि शिक्षाव्रतानि च वधबन्धाद्यतिचाररहितानि निरपवादानि च धारयतः सम्यक् परिपालयतो द्वितीया व्रतप्रतिमा भवति । (प्रसा ९८० वृप २९४) श शकटकर्म कर्मादान का एक प्रकार। शकटउनके पुर्जों का निर्माण और विक्रय । शकटानां तदङ्गानां घटनं खेटनं तथा । विक्रयश्चेति शकटजीविका परिकीर्त्तिता ॥ - बैलगाड़ी आदि का तथा (प्रसावृ प ६२) शङ्का T सम्यक्त्व का एक अतिचार । मति की दुर्बलता के कारण धर्मास्तिकाय आदि सूक्ष्म तत्त्वों के दिय में होने वाला संशय । भगवदर्हत्प्रणीतेषु पदार्थेषु धर्मास्तिकायादिष्वत्यन्तगहनेषु मतिदौर्बल्यात् सम्यगनवधार्यमाणेषु संशयः इत्यर्थः, किमेवं स्यात् नैवमिति संशयकरणं शंका । ( आवहावृ २ पृ २१६ ) शङ्कित १. एषणा दोष का एक प्रकार । आहार आदि में आधाकर्म आदि दोषों की संभावना होने पर भी उसे लेना । आधाकर्म्मकादिशङ्काकलुषितो यदन्नाद्यादत्ते तच्छङ्कितम् । ( योशा १.३८ वृ पृ १३६ ) २. प्रतिषेवणा का एक प्रकार। एषणीय आहार आदि को शंका- सहित लेने से होने वाला प्राणातिपात आदि का आसेवन Jain Education International । एषणेऽप्यनेषणीयतया 'जं संके तं समावज्जे ' । (स्था १०.६९ वृ प ४६० ) शङ्ख महानिधि का एक प्रकार । काव्य, नृत्य, नाट्य और वाद्य की विधियों का प्रतिपादक शास्त्र । ट्टविहीणाडगविही, कव्वस्स चउव्विहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिम्मी, तुडियंगाणं च सव्वेसिं ॥ शङ्खार्त्ता योनि का एक प्रकार । शङ्ख के समान आवर्त्त (घुमाव ) वाली योनि । यह स्त्रीरत्न (चक्रवर्ती की पटरानी) के होती है। शंखस्येवावर्त्तो यस्यां सा शङ्खावर्त्ता । (स्था ३.१०३ वृ प ११६ ) (स्था ३.१०३) सावत्ताणं जोणी इत्थीरयणस्स । शनैश्चर संवत्सर २७९ वह कालमान, जिसमें शनिश्चर एक नक्षत्र अथवा बारह राशियों का भोग करता है। यावता कालेन शनैश्चरो नक्षत्रमेकमथवा द्वादशापि राशीन् भुंक्ते । (स्था ५.२१० वृ प ३२७) शबल १. वह आचरण अथवा आचरणकर्त्ता, जो चारित्र को धब्बे युक्त बना देता है। शबलं - कर्बुरं चारित्रं यैः क्रियाविशेषैर्भवति ते शबलास्तद्योगात् साधवोऽपि । (सम २१.१ वृप ३८) २. परमाधार्मिक देवों का एक प्रकार । वे असुर देव, जो पुण्यहीन नैरयिकों के आंतों के मांस को, हृदय, कलेजे, फेफड़े और वृक्क (गुर्दा ) को बाहर निकाल देते हैं । अंतगयफिम्फिसाणिय, हिययं कालेज्ज फुप्फुसे वक्के । सबला नेरइयाणं कङ्केति तहिं अपुण्णाणं ॥ (सूत्रनि ७१ ) शब्द पुद्गल का एक धर्म । पुद्गलों की संहति और भेद से होने वाला ध्वनिरूप परिणमन, जो स्वाभाविक सामर्थ्य और संकेत द्वारा अर्थबोध का हेतु बनता है। साहणंताणं चेव पोग्गलाणं सहुप्पाए सिया, भिज्जंताणं चेव पोग्गलाणं सद्दुप्पाए सिया । (स्था २.२२० ) स्वाभाविक सामर्थ्य समयाभ्यामर्थबोधनिबन्धनं शब्दः । (प्रनत ४.११) शब्द नय १. काल आदि के भेद से ध्वनि के अर्थभेद को स्वीकार करने वाला दृष्टिकोण | कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदकृच्छब्दः । ( भिक्षु ५.११) २. वे नय, जिनमें शब्द प्रधान होते हैं और अर्थ गौण, जैसे - शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346