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प्रमाणेन विग्रहेण भवान्तरोत्पत्तिस्थानं गच्छतो जीवस्य । (प्रज्ञावृ प ४७३) ३. वह गति, जो विग्रह (शरीर) - निर्माण के लिए होती है । ४. वह गति, जिसमें नोकर्मपुद्गलों का ग्रहण नहीं होता । विग्रहो देहस्तदर्था गतिर्विग्रहगतिः ।'''''विरुद्धो ग्रहो विग्रहो व्याघातः, नोकर्मपुद्गलादाननिरोध इत्यर्थः । (तवा २.२५)
विचय ध्यान
ध्यान की वह अवस्था, जिसमें वस्तुसत्य का पर्यालोचना, अन्वेषणा, विवेचना, विचारणा और विचिति की जाती है। आज्ञादीनां विचयः - पर्यालोचनम् । विचयः - अन्वेषणम् । (तभा ९.३७ वृ)
( तवा ९.३६.१ )
विचितिर्विवेको विचारणा विचयः । विचयो विपश्यना प्रेक्षा इत्यनर्थान्तरम्। (जैसिदी ६.४३ वृ)
विचारभूमि
वह स्थान, जहां उत्सर्ग किया जाता है।
विचारभूमिः पुरीषोत्सर्गभूमिः । (द्र उत्सर्ग समिति)
(व्यभा १७६७ वृ. प ८ )
विचिकित्सा
सम्यक्त्व का एक अतिचार । लक्ष्यपूर्ति के साधनों के प्रति संशयशीलता ।
विचिकित्सा - साधनेषु संशयशीलता। (जैसिदी ५.१० वृ)
विचित्र तप
उपवास, बेला, तेला आदि तप ।
'विचित्रं तु' इति विचित्रमेव चतुर्थषष्ठाष्टमादिरूपं तपः । (उ ३६.२५२ शावृ प ७०६ )
विजय
१. महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विभाग हैं। प्रत्येक विभाग को विजय कहा जाता है।
विदेहा मन्दरदेवकुरूत्तरकुरुभिर्विभक्ता क्षेत्रान्तरवद् भवन्ति । पूर्वे चापरे च । पूर्वेषु षोडश चक्रवर्त्तिविजयाः नदीपर्वतविभक्ताः परस्परागमाः । अपरेप्येवंलक्षणाः षोडशैव । (तभा ३.११) २. अनुत्तरविमानवासी देवों का प्रथम विमान, जो सर्वार्थसिद्ध विमान की एक दिशा में अवस्थित है। (द्र अपराजित)
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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
विज्ञ
जीव जिन नामों से वाच्य होता है, उनमें से एक। जीव तिक्त, कटु, कसैले, अम्ल और मधुर रसों को जानता है, इसलिए वह विज्ञ है ।
जम्हा तित्तकडुकसायंबिलमहुरे रसे जाणइ तम्हा विष्णु त्ति । (भग २.१५ )
विज्ञान
अवाय की पांचवीं अवस्था, जिसमें अवधारित अर्थ की विशेष प्रेक्षा और अवधारणा होती है।
तम्मि चेवावधारितमत्थे विसेसे पेक्खतो अवधारयतो य विण्णाणे ति भण्णति । (नंदी ४७ चू पृ ३६)
विदारणक्रिया
क्रिया का एक प्रकार । आलस्य से प्रशस्त क्रियाओं को न करना और पर के पाप आदि का प्रकाशन करना । आलस्याद् वा प्रशस्तक्रियाणामकरणं पराचरितसावद्यादिप्रकाशनं विदारणक्रिया । (तवा ६.५.१० )
विदेह
(तसू ३.१० )
(द्र महाविदेह, विजय )
विद्या
वह विद्या, जिसकी अधिष्ठायिका देवी होती है और जो जप, होम आदि के द्वारा साधी जाती है। स्त्रीदेवताधिष्ठिता जपहोमसाध्या विद्या ।
(प्रसा ५६७ वृ प १४८ )
विद्याचरणविनिश्चय
उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें विद्या और चारित्र का निरूपण किया गया है।
विज्जत्ति - नाणं, चरणं-चारित्तं, विविधो विसिट्ठी वा णिच्छयो सब्भावो स्वरूपमित्यर्थः, फलं वा निच्छयो, तं जत्थऽज्झयणे वणिज्जति तमज्झयणं विज्जाचरणविणिच्छयो । (नंदी ७७ चू पृ ५८)
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विद्याचारण
१. विद्या - पूर्वगत श्रुत की आराधना से प्राप्त आकाशगमन की लब्धि से सम्पन्न मुनि ।
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