Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 285
________________ २६८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश विमान वे आवास स्थान, जहां वैमानिक देव रहते हैं। 'विमानानि' सौधर्मावतंसकादीनि। (द६.६८ हा प २०७) विमानवासी (स्था ४.१२४) (द्र वैमानिक देव) विरत १. वह व्यक्ति, जो प्राणवध आदि आश्रव-द्वारों में प्रवृत्त नहीं होता, उनके प्रति जिसमें प्रीति नहीं होती। पाणवधादीहिं आसवदारेहिं न वट्टइ त्ति विरतो। (द ४ सूत्र १८ जिचू पृ७४) २. वह व्यक्ति, जो बारह प्रकार के तप में रत होता है। विरओ णामऽणेगपगारेण बारसविहे तवे रओ। (दजिचू पृ १५४) विरताविरत १. देशविरत, श्रावक। २. जीवस्थान/गुणस्थान का पांचवां प्रकार । संयम और असंयम दोनों से युक्त जीव की आत्मविशुद्धि। विरताविरतो-देशविरतः। (सम १४.५ वृ प २६) विरताविरतो मणुयपंचेंदियतिरिएसु देशमूलुत्तरगुणपच्चक्खाणी। (आवचू २ पृ १३४) विरति संवर सावधवृत्ति-पापकारी प्रवृत्ति और अन्तर्लालसा का त्याग करने से होने वाला कर्म के आगमन का निरोध, अव्रत आश्रव का निरोध। सावद्यवृत्तिप्रत्याख्यानं विरतिः। (जैसिदी ५.१२) विराधक १. वह व्यक्ति, जो रत्नत्रयात्मक अपनी विशुद्ध आत्मा को । छोड़कर पर द्रव्य का विचार करता है। जो रयणत्तयमइओ मुत्तूणं अप्पणो विसुद्धप्पा। चिंतेइ य परदव्वं विराहओ निच्छयं भणिओ॥ (आसा २०) २. लक्ष्य-सिद्धि के लिए सम्यक साधना न करने वाला। (भग ३.७२) ३. वह व्यक्ति, जो स्वीकृत व्रत का अतिक्रमण करने के बाद उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त नहीं करता। (भग ८.२५१) विराधना लक्ष्य-सिद्धि के लिए उपयुक्त साधना का भङ्ग करना। (सम ३.५) विरुद्धराज्यातिक्रम स्थूलअदत्तादानविरमण व्रत का एक अतिचार। दो विरोधी राज्यों की सीमा का अतिक्रमण कर व्यापार करना, आयातनिर्यात करना। विरुद्धनपयो राज्यं तस्यातिक्रमः-अतिलङ्गन विरुद्धराज्यातिक्रमः। (उपा १.३४ वृ पृ१२) विरुद्धहेत्वाभास विवक्षित साध्य से विपरीत पक्ष में व्याप्त हेतु, जिसका अविनाभाव साध्य से विपरीत के साथ हो, जैसे-शब्द नित्य है, क्योंकि वह कार्य है। साध्यविपर्ययेणैव यस्यान्यथाऽनुपपत्तिरध्यवसीयते स विरुद्धः। (प्रनत ६.५२) विवक्षितसाध्याद् विपरीते एव व्याप्तो हेतुः-विरुद्धः, यथा-नित्यः शब्दः, कार्यत्वात्। (भिक्षु ३.१८७) विरेचन अनाचार का एक प्रकार । रोग की संभावना से बचने के लिए तथा रूप, बल आदि बनाए रखने के लिए जलाब आदि का प्रयोग करना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। (द्र वमन) विविक्तवासवसतिसमितियोग अचौर्य महाव्रत की एक भावना। यथाकृत, प्रासुक और विविक्त (एकान्त) उपाश्रय में निवास करना। ""अहाकडे फासुए विवित्ते पसत्थे उवस्सए होइ विहरियव्वं"एवं विवित्तवासवसहिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा। (प्रश्न ८.९) विविक्तशयनासन ब्रह्मचर्यगुप्ति का प्रथम प्रकार। नो इत्थीपसपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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