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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
बीजसूक्ष्म सरसों आदि के अग्रभाग पर होने वाली कणिका। सरिसवादि सालिस्स वा मुहमूले जा कणिया सा बीयसुहुमं।
(द ८.१२ जिचू पृ २७८)
२. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान, जिसके औत्पत्तिकी आदि चार प्रकार हैं। उप्पत्तिया वेणइया, कम्मया पारिणामिया। बुद्धी चउव्विहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ॥
(नन्दी ३८)
१. बोधिसम्पन्न, आत्मबोध से सम्पन्न। २. उपायज्ञ-ज्ञान, दर्शन और चारित्र की चिन्ता करने वाला। तिविहा बुद्धा पण्णत्ता, तं जहा-णाणबुद्धा, दंसणबुद्धा, चरित्तबुद्धा।
(स्था ३.१७७) ३. केवलज्ञान आदि अनन्त गुणों से युक्त। केवलज्ञानाद्यनन्तगुणसहितत्वात् बुद्धः। (बृद्रसंवृ पृ६३) ४. अर्हत्, जो उत्पन्नज्ञान-दर्शन के धारक, सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी
बुद्धि ऋद्धि ऋद्धि का एक प्रकार। अवगम (ज्ञान) विषयक ऋद्धि, जिसके बीजबुद्धि आदि अठारह प्रकार हैं। बुद्धिरवगमो ज्ञानं तद्विषया अष्टावदशविधा ऋद्धयः ।
(तवा ३.३६.३)
हैं।
(द्र बुद्धजागरिका) बुद्ध जागरिका जागृत अवस्था, जो केवलज्ञानी को प्राप्त है। उप्पण्णनाणदंसणधरा अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए सव्वण्णू सव्वदरिसी एएणं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति।
(भग १२.२१)
बुद्धपुत्र वह शिष्य, जो आचार्य के पुत्रतुल्य होता है। बुद्धानाम्-आचार्यादीनां पुत्र इव पुत्रो बुद्धपुत्रः।
(उ १.४ शावृ प ४६) बुद्धबोधितसिद्ध वह सिद्ध, जो तीर्थंकर आदि के द्वारा प्रतिबोध पाकर मुक्त होता है। जे सतंबुद्धेहिं तित्थकरादिएहिं बोहिता, पत्तेयबुद्धेहिं वा कविलादिएहिं बोधिता ते बुद्धबोधिता।
(नन्दी ३१ चू पृ २६) बुद्धि १. अवाय की चौथी अवस्था, जिसमें अवधारित अर्थ का स्थिर रूप में स्पष्ट बोध होता है। पुणो पुणो तमत्थावधारणावधारितं बुझतो बुद्धी भवइ।
(नन्दी ४३ चू पृ ३६)
बोधि १. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म-वीतरागमार्ग की प्राप्ति। बोधि:-जिनधर्मलाभः। (स्था २.४२० वृ प ९१) २. सम्यग्दर्शन, जो दर्शनमोह कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होता है। ""दर्शनमोहनीयम् ""बोधेः सम्यग्दर्शनपर्यायत्वात् तल्लाभस्य च तत्क्षयोपशम-जन्यत्वादिति। (भग ९.१२ वृ) ३. अप्राप्त सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की प्राप्ति। ४. सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की प्राप्ति के उपाय का चिन्तन। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणामप्राप्तप्रापणं बोधिः।
(बृद्रसंवृ पृ ११४) उप्पजदि सण्णाणं जेण उवाएण तस्सुवायस्स। चिंता हवेइ बोही...॥
(द्वाअ ८३) (द्र जिनधर्म) बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा बारहवीं अनुप्रेक्षा । बोधि की दुर्लभता का अनुचिन्तन करना। बोधिदुर्लभत्वमनुचिंतयतो बोधिं प्राप्य प्रमादो न भवतीति बोधिदुर्लभत्वानुप्रेक्षा।
(तभा ९.७) ब्रह्मचर्य १. सुचारित्र । आचार। २. नौ गुप्तियुक्त मैथुनविरति। ३. गुरुकुलवास। ४. आत्मरमण।
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