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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
जहणो जेण पकप्पज्झयणं अधीतं, उक्कोसो चोद्दसपुव्वधरो, तम्मझे मज्झिमो । ( निभा ४९५ चू पृ १६५ )
मध्वास्स्रव
लब्धि का एक प्रकार । वक्ता के वचनों को मधु के समान मधुर एवं आनंददायी बनाने वाली योगज विभूति । मधुवत्सर्वदोषोपशमनिमित्तत्वादाह्लादकत्वाच्च तद्वचनस्य । (औपवृ पृ ५३)
मन
१. जिसके द्वारा सब विषयों का ग्रहण किया जाता है और जो त्रिकालवर्ती (भूत, भविष्य तथा वर्तमान) विषयों को
जानता
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२. मनोवर्गणा के पुद्गलों से उपरंजित चित्त ही मन है। तदेव (चित्तं) मनोद्रव्योपरंजितं मनः । (अनुचू पृ १३, १४) (द्र द्रव्यमन, भावमन)
मन असंयम
अकुशल मन की प्रवृत्ति करना ।
मनोवाक्कायानामसंयमास्तेषामकुशलानामुदीरणानि ।
(सम १७.१ वृ प ३२)
मन असंवर
कर्म - आकर्षण की हेतुभूत मानसिक प्रवृत्ति ।
(स्था १०.११ )
मनः परिचारक
प्राण और अच्युत कल्प के इन्द्र तथा आनत, प्राणत, आरण व अच्युत - इन चार कल्पों के देव, जिनकी कामेच्छा मानसिक संकल्प मात्र से शांत हो जाती है।
दो इंदा मणपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा - पाणए चेव, अच्चुए चेव । (स्था २.४६० )
आणदपाणदकप्पे आरणकप्पे य अच्चुदे य तहा। मणपडिचारा णियमा एदेसु य होंति जे देवा ॥
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(मू ११४४)
मनः पर्यवज्ञान
वह अतीन्द्रिय ज्ञान, जिससे मनोद्रव्यों (मनन रूप में परिणत पुद्गलों) का परिच्छेद होता है।
मणपज्जवनाणं मनसि मनसो वा पर्यवः मनः पर्यवः -
सर्वतोमनोद्रव्यपरिच्छेदः । मनांसि - मनोद्रव्याणि पर्येतिसर्वात्मना परिच्छिनत्ति मनः पर्यायम् । (नन्दी २३ मवृ प ६६)
मनः पर्यवज्ञानावरण
ज्ञानावरणीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से मन: पर्यव ज्ञान आवृत होता है। ''मनःपर्यायज्ञानसंज्ञस्तस्यावरणं मनः पर्यायज्ञानावरणम् । (तभा ८.७ वृ)
मनः पर्यवज्ञानी
वह जीव, जो मनः पर्यवज्ञानयुक्त है। (द्र मनः पर्यवज्ञान) मनः पर्याप्ति
मनः पर्यायज्ञान
(द्र मनः पर्यवज्ञान)
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छह पर्याप्तियों में छठी पर्याप्ति। मन के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, परिणमन और उत्सर्जन करने वाली पौद्गलिक शक्ति की संरचना ।
मणजोग्गे पोग्गले घेत्तूण मणत्ताए परिणामेत्ता मणजोगत्ताए निसिरणसत्ती मणपज्जत्ती । (नन्दीचू पृ २२)
(भग ६.४५)
मनः पुण्य
पुण्य का एक प्रकार । गुणी (संयमी) के प्रति तोषभाव के प्रयोग से होने वाला पुण्य प्रकृति का बंध । मनसा गुणिषु तोषात् वाचा प्रशंसनात् कायेन पर्युपासनानमस्काराच्च यत्पुण्यं तन्मनः पुण्यादीनि ।
(स्था ९.२५ वृ प ४२८ )
मनः प्रश्नविद्या
मन में उठे हुए प्रश्नों का उत्तर देने वाली विद्या । मनः प्रश्नविद्याश्च - मनः प्रश्नितार्थोत्तरदायिन्यः ।
वा।
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मनः संयम
अकुशल मन का निरोध और कुशल मन का प्रवर्त्तन । अभिद्रोह, अभिमान, ईर्ष्या आदि से होने वाली मन की निवृत्ति और धर्मध्यान में प्रवृत्ति ।
मणोसंजमो णाम अकुसलमणणिरोहो वा कुसलमणउदीरणं (दअचू पृ १२) मनसोऽभिद्रोहाभिमानेर्ष्यादिभ्यो निवृत्तिर्धर्मध्यानादिषु च
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(समप्र ९८ वृप ११५ )