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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
योगसंग्रह का एक प्रकार। कष्ट-सहिष्णता, परीषहों पर रज्जुप्रमाणो जम्बूद्वीपमेरुरुचकमध्य इति। (तभा ३.६७) विजय प्राप्त करने का अभ्यास करना।
'तिरियलोए'....समयपरिभाषया तिर्यगमध्ये व्यवस्थितो लोक'तितिक्ख'त्ति तितिक्षा परीषहादिजयः।
स्तिर्यग्लोकः। अथवा तिर्यक् शब्दो मध्यमपर्यायः। (सम ३२.२.२ वृ प ५५)
(अनु १७७ मवृ प ८०) तिर्यक्सम्पातिम
अष्टादशशतयोजनोच्छ्रितोऽसंख्यद्वीपसमुद्रायामस्तिर्यक् । वह जीव, जो तिरछा उड़ता है, जैसे- भ्रमर, कीट, पतंग
(जैसिदी १.८ वृ) आदि।
तिर्यग्व्यतिक्रम तिरिच्छं संपयंतीति तिरिच्छसंपाइमा, ते य पयंगादी।
(तसू ७.२५) . (द ५.१८ जिचू पृ १७०) (द्र तिर्यग्दिशाप्रमाणातिक्रम) तिर्यकूसामान्य
तिर्यञ्चगति प्रतिव्यक्ति में होने वाली तुल्य परिणति, जैसे---- प्रत्येक घट
गतिनाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव तिर्यञ्च में घटत्व।
पर्याय का वेदन करता है। तुल्या परिणतिर्भिन्नव्यक्तिषु यत्तदुच्यते।
(द्र नरकगति) तिर्यक्सामान्यमित्येव घटत्वं तु घटेष्विव॥ (द्रत १.५) प्रतिव्यक्ति तत् तिर्यक्सामान्यम्, यथा-वटनिम्बादिषु वृक्ष
तिर्यञ्चायुष्क त्वम्।
(भिक्षु ६.६ वृ) आयुष्य कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव तिर्यञ्च(द्र ऊर्ध्वतासामान्य)
अवस्था का अनुभव करता है।
आयुरेवायुष्कम्"तिर्यग्योनय एक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्चेन्द्रितिर्यदिशाप्रमाणातिक्रम
यास्तेषामिदं तैर्यग्योनम्।
(तभा ८.११ वृ) दिग्व्रत का एक अतिचार। तिर्यक दिशा में जाने के नियत प्रमाण का अनजान में अथवा किसी अन्य कारण वश अतिक्रमण
तीर्थ करना।
उपा १.३७ वृ पृ१४)
१. श्रुतज्ञान । प्रवचन, जो द्वादशांग के रूप में प्रसिद्ध है। (द्र ऊर्ध्वदिशाप्रमाणातिक्रम)
तीर्थं श्रुतज्ञानं तत्पूर्विका 'अर्हत्ता' तीर्थकरता, न खलु
भवान्तरेषु श्रुताभ्यासमन्तरेण भगवत एवमेवाऽऽर्हन्त्यलक्ष्मीतिर्यग्योनिक
रुपढौकते।
(बृभा ११९४ वृ) औपपातिक (देव तथा नरक) और मनुष्य से भिन्न जीव, जो । .."पवयणं पि तित्थं"।
(विभा १३८०) निम्न भाव में रहते हैं।
तित्थं दुवालसंगं।
(धव पु १३ पृ३६६) औपपादिकमनुष्येभ्य: शेषास्तिर्यग्योनयः। (तस ४.२८) २. वह श्रमणसंघ, जिसमें साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका तिरोभावो न्यग्भाव: उपबाह्यत्वमित्यर्थः ततः कर्मोदयापादित- चारों का समावेश होता है। भावा तिर्यग्योनिरित्याख्यायते। (तवा ४.२७)
तित्थं पुण चाउवण्णे समणसंघे। (भग २०.७४) तिर्यग्लोक
तीर्थंकर मध्यलोक, जो झल्लरी संस्थान वाला है, असंख्य द्वीप-- -
शलाकापुरुष का एक प्रकार। तीर्थ का प्रवर्तन करने वाला. समुद्रमय एक रज्जु विस्तीर्ण है तथा अठारह सौ योजन ऊंचा
प्रवचनकार। है, जिसके मध्य में जम्बूद्वीप और मेरु पर्वत है।
अरहा ताव नियमं तित्थकरे।
(भग २०.७४) (देखें चित्र पृ ३४३)
पज्जा पवायगा पवयणस्स ते बारसंगस्स॥ (विभा १०६३) तिर्यग्लोको झल्लर्याकृतिः।
(तभा ३.६)
(द्र जिन) झल्लरी सर्वत्र समतला तुल्यविष्कम्भायामवादिनविशेषस्तदवत् तिर्यग्लोकसन्निवेशः, स च विष्कम्भायामाभ्यां
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