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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
तइयकसायाणुदए पच्चक्खाणावरणनामधिज्जाणं । देसिक्कदेसविरइं चरित्तलंभं न उ लहंति ॥
प्रत्याख्यानावरण क्रोध
चारित्रमोहनीय कर्म की एक प्रकृति । यह क्रोध बालू की रेखा के समान अल्पकाल तक टिकने वाला होता है।
(स्था ४.३५४)
""वालुयराइसमाणे
(द्र प्रत्याख्यानावरण कषाय)
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(आवनि ११० )
प्रत्याख्यानावरण मान
चारित्रमोहनीय कर्म की एक प्रकृति । यह मान काष्ठ के स्तम्भ के समान अल्प स्तब्ध होता है।
........दारुथंभसमाणं ॥
(द्र प्रत्याख्यानावरण कषाय)
(स्था ४.२८३)
प्रत्याख्यानावरण माया
चारित्रमाहनीय कर्म की एक प्रकृति । यह चलते हुए बैल की मूत्रधार के समान अल्प वक्र होती है। गोमुत्तिकेतणासमाणा ।
(स्था ४.२८२)
(द्र प्रत्याख्यानावरण कषाय )
प्रत्याख्यानावरण लोभ
चारित्रमोहनीय कर्म की एक प्रकृति । यह लोभ गाड़ी के खंजन के राग से रञ्जित वस्त्र के समान अल्प आसक्ति वाला होता है।
खंजणरागरत्तवत्थसमाणे ।
(द्र प्रत्याख्यानावरण कषाय)
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(स्था ४.२८४)
प्रत्याख्यानी
असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार, जो याचना करने वालों को निषेध करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा है।
याचमानस्य प्रतिषेधवचनं प्रत्याख्यानी ।
(प्रज्ञा ११.३७ वृ प २५९ )
प्रत्याजाति
एक भव से च्युत होकर पुनः उसी भव में जन्म लेना । प्रत्याजाति मनुष्य और तिर्यंच के होती है।
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जत्तो चुओ भवाओ, तत्थेव पुणो वि जह हवति जम्मं । सा खलु पच्चाजाती, मणुस्स- तेरिच्छिए होइ ॥ (दशानि १३२)
प्रत्यावर्त्तन
अवाय की दूसरी अवस्था, जिसमें निर्णीयमान अर्थ के स्वरूप की बार-बार आलोचना होती है। हणभावनियट्टस्स वितमत्थमालोयंतस्स पुणो पुणो णियट्टणं पच्चाउट्टणं भणति । (नन्दी ४७ चू पृ ३६)
प्रत्येकजीव
वह वनस्पति, जिसके एक शरीर में एक जीव होता है । पत्ता पत्तेयजिया... ॥ (प्रज्ञा १.४८. ९)
(द्र प्रत्येकशरीरी)
प्रत्येकबुद्ध
वह मुनि, जो किसी एक बाह्य निमित्त से प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा स्वीकार करता है।
पत्तेयं – बाह्यं वृषभादिकारणमभिसमीक्ष्य बुद्धाः प्रत्येक(नन्दी ३१ चू पृ २६)
बुद्धाः ।
प्रत्येकबुद्धता
बुद्धि ऋद्धि का एक प्रकार, जिसके द्वारा परोपदेश के बिना अपनी विशिष्ट शक्ति से ज्ञान तथा संयम का विशिष्ट विकास होता है।
परोपदेशमन्तरेण स्वशक्तिविशेषादेव ज्ञानसंयमविधाननिपुणत्वं प्रत्येकबुद्धता | ( तवा ३.३६)
प्रत्येकबुद्धसिद्ध
वह सिद्ध, जो प्रत्येकबुद्ध की अवस्था में मुक्त होता है । (नन्दी ३१)
(द्र प्रत्येकबुद्ध)
प्रत्येकशरीर
एक ही जीव का शरीर । वह शरीर, जिसका निर्माण एक करता है एक्कस्सेव जीवस्स जं शरीरं तं पत्तेयसरीरं ।
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(धव पु१४ पृ २२५ ) पुढविक्काइयाणं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयं सरीरं बंधंति । (भग १९.५)
(द्र साधारण शरीर)
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