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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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शब्देष विशेषणबलेन प्रतिनियतार्थप्रतिपादनशक्तेनिक्षेपणं निक्षेपः।
(जैसिदी १०.४)
निगमन साध्य को पक्ष में दोहराना। जैसे-इसलिए यह अनित्य है। साध्यस्य निगमनम्। साध्यधर्मस्य धर्मिणि उपसंहारो निगमनम्, यथा-तस्मादनित्यः।
(भिक्षु ३.२८ वृ)
नित्य द्रव्य का वह अंश, जो कभी च्युत नहीं होता, जो अपरिवर्तनशील है। तद्भावाव्ययं नित्यम्।
(तसू ५.३०) सतोऽप्रच्युतिर्नित्यम्।
(भिक्षु ६.४) नित्याग्रपिण्ड अनाचार का एक प्रकार । आदरपूर्वक निमन्त्रित कर प्रतिदिन दिया जाने वाला आहार आदि, जो मुनि के लिए अग्राह्य है। 'नियाग' त्ति-नित्यमामन्त्रितं पिण्डम्।
(द ३.२ हावृ प २०३) निदान मेरी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अमुक प्रकार की भौतिकसम्पदा और ऐश्वर्य मिले, इस प्रकार का अध्यवसाय। निदानम्-अवखण्डनं तपसश्चारित्रस्य वा, यदि अस्य तपसो फलं ततो जन्मान्तरे चक्रवर्ती स्यामर्धभरताधिपतिर्महामण्डलिकः सुभगो रूपवानित्यादि। (तभा ७.३२ वृ)
निदानकरण मारणान्तिक संलेखना का एक अतिचार। (तसू ७.३२) (द्र कामभोगाशंसाप्रयोग)
निगोद साधारण वनस्पति के अनंत जीवों का एक शरीर। निगोदरूपेऽप्येकैकस्मिन् शरीरे तच्छरीरात्मकतया अनन्तान् जीवान् परिणतान् जानीहि।।
(प्रज्ञावृ प ४०) (द्र गोलक) निगोद जीव एक शरीर में विद्यमान अनंत जीव। वे दो प्रकार के हैं१. चतुर्गतिनिगोद-वे निगोद जीव, जो चार गतियों में भ्रमण कर पुनः निगोद में प्रविष्ट हैं। २. नित्यनिगोद-वे निगोद जीव, जिन्होंने कभी भी निगोद को नहीं छोड़ा है, सदैव निगोद में रहते हैं। अस्थि अणंता जीवा जेहि ण पत्तो तसाण परिणामो। भावकलंकअपउरा णिगोदवासं ण मुंचंति॥
(षखं ५.६.१२७) णिगोदेसु जे द्विदा जीवा ते दुविहा-चउग्गइणिगोदा। णिच्चणिगोदा चेदि। तत्थ चउग्गइणिगोदा णाम जे देवणेरइयतिरिक्खमणुस्सेसूप्पज्जियूण पुणो णिगोदेसु पविसिय अच्छंति।"णिच्चणिगोदा णाम जे सव्वकालं णिगोदेसुचेव अच्छंति।
(धव पु १४ पृ २३६) (द्र साधारण जीव) निग्रह वाद-दोष का एक प्रकार । वादी अथवा प्रतिवादी के द्वारा अपने पक्ष को सिद्ध न कर पाना तथा छल आदि के द्वारा प्रतिवादी को निगृहीत करना। स्वपक्षासिद्धिरूप: पराजयो निग्रहहेतुत्वान्निग्रहः।
(प्रमी २.१.३३) निग्रहः-छलादिना पराजयस्थानं स एव दोषो निग्रहदोषः।
(स्था १०.४४ वृ प ४६८)
निदान शल्य शल्य का एक प्रकार । वह भावात्मक आयुध, जो आकांक्षा के रूप में उदित होकर संयम को बाधित करता है। नितरां दीयते-लूयते मोक्षफलमनिन्द्यब्रह्मचर्यादिसाध्यं कुशलकर्मकल्पतरुवनमनेन देवद्धर्यादिप्रार्थनपरिणामनिशितासिनेति निदानम्। (स्था ३.३८५ वृ प १३९) (द्र शल्य) निदा वेदना वेदना का एक प्रकार । चैतन्य अवस्था में अनुभव की जाने वाली वेदना। दुविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा--णिदा य अणिदा य॥ ..."जेते सण्णिभूया ते णं निदायं वेदणं वेदेति"जेते असण्णिभूया ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति। नितरां निश्चितं वा सम्यग् दीयते चित्तमस्यामिति निदा।
(प्रज्ञा ३५.१६ वृ प ५५७)
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