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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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स्त्रीणां कथा स्त्रीकथा "रागानुबन्धिनी देशजातिकुलनेपथ्यभाषागतिविभ्रमेडितहास्यलीलाकटाक्षप्रणयकलहभंगाररसानुविद्धा वात्येव चित्तोदधेरवश्यंतया विक्षोभमातनोति तस्मात् तद्वर्जनं श्रेय इति भावयेत्। (तभा ७.३ वृ) न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान संस्थान का दूसरा प्रकार। जिस शरीर की संरचना में नाभि से ऊपर का भाग विस्तृत अर्थात् प्रमाणोपेत और नीचे का भाग छोटा-बड़ा अर्थात् प्रमाणोपेत न हो। नाभेरुपरि विस्तरबहलं शरीरलक्षणोक्तप्रमाणभाग् अधस्तु हीनाधिकप्रमाणम्।
(स्था ६.३१ वृ प ३३९)
न्याय युक्ति के द्वारा तत्त्वों का परीक्षण करना. जिसके चार अंग हैं-प्रमाण, प्रमेय, प्रमिति, प्रमाता। युक्त्यार्थपरीक्षणं न्यायः।।
(भिक्षु १.१) प्रमाणं प्रमेयं प्रमितिः प्रमाता चेति चतुरङ्गः। (भिक्षु १.२)
न्यासापहार स्थल मषावाद विरमण व्रत का एक अतिचार। निक्षिप्त धनराशि की विस्मतिवश अल्प संख्या बतलाना। न्यासापहारो विस्मरणकृतपरनिक्षेपग्रहणम्।
(तभा ७.२१ वृ)
पञ्चयाम पांच प्रकार का यम (संयम) यानी पांच महाव्रत। 'पंचजामस्स' त्ति पञ्चानां यामानां-महाव्रतानां समाहारः पञ्चयामम्।
__ (सम २५.१ वृ प ४३)
(सम पञ्चशिक्षित धर्म अहिंसा, सत्य. अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-इन पांच शिक्षाओं से युक्त धर्म। पञ्चशिक्षा:-प्राणातिपातादिविरमणोपदेशात्मिका: संजाता यस्मिन्नसौ पञ्चशिक्षितः।
(उ २३.१२ शावृ प ४९९, ५००) पञ्चाङ्गप्रणिपात वह प्रणति, जिसमें जानुयुगल, करयुगल और मस्तक-ये पांच अंग प्रणत होते हैं। दो जाणू दोण्णि करा, पंचमगं होइ उत्तमंगं तु। सम्मं संपणिवाओ णेओ पंचंगपणिवाओ।
(पञ्चा ११२) पञ्चाणुव्रतिक धर्म वह धर्म, जिसका भगवान महावीर ने गृहस्थ के लिए पांच अणुव्रत के रूप में प्रज्ञापन किया था। से जहाणामए अज्जो! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए" धम्मे पण्णत्ते।
(स्था ९.६२) पञ्चास्तिकाय धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल-ये पांच निरपेक्ष अस्तित्व, जो त्रैकालिक हैं, प्रदेशस्कन्ध अथवा परमाणुस्कन्ध के रूप में हैं। पंचत्थिकाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ । भुविंच, भवइ य, भविस्सइ य।धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे। (नंदी १२६) (द्र अस्तिकाय) पञ्चेन्द्रिय स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षुः और श्रोत्र-इन पांच इन्द्रियों वाला प्राणी, जैसे-मनुष्य, गाय आदि। स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियपञ्चयुक्ता मनुष्यादयः पञ्चेन्द्रियाः।
(बृद्रसं ११ वृ पृ २३)
पङ्कप्रभा नरक की चतुर्थ पृथ्वी (अञ्जना) का गोत्र, जहां पङ्क जैसी आभा होती है।
(देखें चित्र पृ ३४६) (द्र रत्नप्रभा) पंक इवाभाति पंकप्रभा।
(अनुचू पृ ३५)
पक्ष
(भिक्षु ३.९) (द्र धर्मी, साध्य) पञ्चमहाव्रतिक धर्म भगवान् महावीर के द्वारा मुनि के लिए प्रज्ञप्त पंचमहाव्रतात्मक धर्म। से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलए धम्मे पण्णत्ते। (स्था ९.६२)
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