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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अपक्वौषधिभक्षण
उपभोग - परिभोग-परिमाण व्रत का एक अतिचार । अपक्व धान्य का आहार करना ।
अपक्वायाः - अग्निनाऽसंस्कृताया ओषधे: - शाल्यादिकाया भक्षणता - भोजनमित्यर्थः । (उपा १.३८ वृ पृ १५ )
अपध्यानाचरित
अनर्थदण्ड का एक प्रकार । आर्त्त एवं रौद्र ध्यान का आसेवन । जय पराजय, वध, बन्धन, अङ्गच्छेद, वित्तहरण आदि के विषय में किया जाने वाला चिन्तन । 'अवज्झाणायरियं' ति अपध्यानम् - आर्त्तरौद्ररूपं तेनाचरितः - आसेवितो योऽनर्थदण्डः सः ।
( उपा १.३० वृ पृ ९ )
अपरसंग्रह
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संग्रह नय का एक प्रकार । अवान्तर सामान्य को स्वीकार करने वाला दृष्टिकोण, जैसे - जो सत् है, वह द्रव्य है द्रव्यत्वादीनि अवान्तरसामान्यानि मन्वानस्तद्भेदेषु गजनि - मीलिकामवलम्बमानः पुनरपरसंग्रहः । धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्याणामैक्यं द्रव्यत्वाभेदा
(प्रनत ७.१९, २०)
दित्यादिर्यथा ॥
अपराजित
अनुत्तरविमान का चतुर्थ विमान। इस विमान में रहने वाला देव अभ्युदय में विघात करने वाले हेतुओं से पराजित नहीं होता ।
वह देव प्रतनु कर्म वाला होता है। वह सतत तृप्त होता है, इसलिए भूख आदि से पराजित नहीं होता ।
अनुत्तराः पञ्च देवनामान एव। विजिता अभ्युदयविघ्नहेतवः एभिरिति विजय - वैजयन्त- जयन्ताः । तैरेव विघ्नहेतुभिर्न पराजिता अपराजिताः । (तभा ४.२० ) प्रतनुकर्मपटलावच्छन्नत्वात् सतततृप्तत्वान्न क्षुदादिभिः पराजीयन्त इत्यपराजिताः । (तभा ४.२० वृ)
अपराध आलोचना
अतिक्रमण की विशुद्धि के लिए की जाने वाली आलोचना । (निभा ६३१० चू)
अपरावर्त्तमाना वह कर्म-प्रकृति, जो किसी दूसरी प्रकृति के बंध अथवा
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उदय को रोककर बंध अथवा उदय को प्राप्त नहीं होती, जैसे - उच्छ्वास नामकर्म, तीर्थंकर नामकर्म आदि ।
याः प्रकृतयः प्रकृत्यन्तरस्य बंधमुदयं वा विनिवार्य बंधमुदयं वाऽगच्छन्ति ताः परावर्त्तमानाः इतरा अपरावर्त्तमानाः । (कप्र पृ ३४)
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(द्र परावर्त्तमाना)
अपरिगृहीतागमन
स्वदार संतोष व्रत का एक अतिचार । वेश्यागमन करना, परस्त्रीगमन करना ।
'अपरिग्गहियागमणे' त्ति अपरिगृहीता नाम वेश्या अन्यसत्का परिगृहीतभाटिका कुलाङ्गना वा अनाथेति ।
(उपा १.३५ वृ पृ १३ )
अपरिगृहीता देवी
जिसका कोई स्वामी नहीं होता और जो भोग के लिए आमंत्रित की जाती है, वह देवी ।
या गणिकात्वेन पुंश्चलित्वेन वा परपुरुषगमनशीला अस्वामिका सा अपरिगृहीता । ( तवा ७.२८)
अपरिग्रह महाव्रत
पांचवां महाव्रत ।
(द्र सर्वपरिग्रह विरमण )
अपरिग्रह संवर
( उ २१.१२)
( प्रश्न ६.१.२ )
(द्र सर्वपरिग्रह विरमण )
अपरिणत
१. वह स्थावर जीव, जो विरोधी शस्त्र- स्वकाय अथवा परकाय शस्त्र द्वारा परिणामान्तर - निर्जीवता को प्राप्त नहीं हुआ है।
पुढवी चित्तमंतमक्खाया....अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।
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(द ४. सू. ४) २. वह जीव और पुद्गल, जो विवक्षित परिणाम में अवस्थित है।
द्रव्याणि - जीवपुद्गलरूपाणि तानि च विवक्षितपरिणामत्यागेन परिणामान्तरापन्नानि परिणतानि, विवक्षितपरिणामवन्त्येव अपरिणतानि । (स्था २.१३ वृ प ५१ )
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