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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
गम्ममाणे अगए"""ते थेरा भगवंतो अण्णउत्थिए एवं पडिभणंति, पडिभणित्ता गइप्पवायं नाम अज्झयणं पण्णवइंस॥
(भग ८.२९२)
२. जीव का वर्तमान भव से आगामी भव में गमन। नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव रूप में भव की प्राप्ति। गम्यते-तथाविधकर्मसचिवैः प्राप्यते इति गतिःनारकत्वादिपर्यायपरिणतिः। (प्रज्ञावृ प ४६९) ३. गमन-एक देश से दूसरे देश को प्राप्त करने का साधन। देशाद्देशान्तरप्राप्तिहेतुर्गतिः।
(ससि ४.२१)
गन्ध
पुद्गल का एक लक्षण, जो घ्राणेन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य है। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं। (उ २८.१२) घाणस्स गंधं गहणं वयंति". गंधस्स घाणं गहणं वयंति .. (उ ३२.४८,४९)
गतिकल्याण वह देव, जो अनुत्तरोपपातिक देवलोक में अथवा वैमानिक देवलोक में उत्पन्न होता है तथा जो इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिशक, लोकपाल, परिषद्, आत्मरक्षक, प्रकीर्णक आदि रूप में उत्पन्न होता है। गतिकल्लाणा-कल्लाणगती अणुत्तरोववाइएसु वेमाणिएसु वा, इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशलोकपालपरिषदात्मरक्षप्रकीर्णकेषु। (सूत्र २.२.६९ चू पृ ३६६, ३६७) गतिनाम नाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव नरक आदि चतुर्विध गति को प्राप्त करता है। नरक गतिस्तिर्यग्गतिर्मनुष्यगतिर्देवगतिस्तजनकं नाम गतिनाम।
(प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४६९) गतिनामनिधत्तायु आयुबंध का एक प्रकार। नरक आदि चार गतिनाम कर्म के साथ होने वाला आयु का निषेचन। गतिर्नरकगत्यादिभेदाच्चतुर्द्धा सैव नाम गतिनाम तेन सह निधत्तमायुर्गतिनामनिधत्तायुः। (प्रज्ञा ६.११८ वृ प २१७) गतिप्रतिघात प्रशस्त गति का अवरोध, जो अशुभ आचरण के द्वारा निष्पन्न होता है। गतेः-देवगत्यादेः प्रकरणाच्छुभायाः प्रतिघात:- तत्प्राप्तियोग्यत्वे सति विकर्मकरणादप्राप्तिर्गतिप्रतिघातः।
(स्था ५.७० वृ प २८९) गतिप्रवाद गति का वर्णन करने वाला शास्त्र। """"अम्हण्णं अज्जो! गम्ममाणे गए"।तुब्भण्णं अप्पणा चेव ।
गन्धनाम नाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से शरीर के गंध की व्यवस्था होती है। गन्ध्यते-आघ्रायते इति गन्धः, स द्विधा, तद्यथासुरभिगन्धो दुरभिगन्धश्च, तन्निबन्धनं गन्धनामापि द्विधा".." यदुदयाज्जन्तुशरीरेषु सुरभिगन्ध उपजायते यथा शतपत्रमालतीकुसुमादीनां तत्सुरभिगन्धनाम, यदुदयाद् दुरभिगन्धः शरीरेषू-पजायते यथा लशुनादीनां तत् दुरभिगन्धनाम।
(प्रज्ञा २३.४८ वृ प ४७३) गन्धर्व वानमंतर देव का चौथा प्रकार। इस जाति के देव रक्तिम आभावाले और गंभीर होते हैं। उनका रूप सुन्दर और स्वर मधुर होता है। वे सिर पर मुकुट और गले में हार पहनते हैं। उनका चिह्न होता है तुंबरु का वृक्ष। गान्धर्वा रक्तावदाता गम्भीराः प्रियदर्शनाः सुरूपाः सुमुखाकारा: सुस्वरा मौलिधरा हारविभूषणास्तुम्बरुवृक्षध्वजाः।
(तभा ४.१२)
गमनगुण एक विशेष गुण, जिसके द्वारा धर्मास्तिकाय गतिपरिणत जीव
और पुद्गल की गति में सहायक बनता है। 'गमणगुणे' त्ति जीवपुद्गलानां गतिपरिणतानां गत्युपष्टम्भहेतुः।
(भग २.२५ वृ) गमिक श्रुत वह श्रुत, जिसमें भंग, गणित अथवा गमों-सदृश पाठों की बहुलता हो, जैसे-दृष्टिवाद। भंगगणियाइ गमियं जं सरिसगमं च कारणवसेण। दिद्रिवाए
(विभा ५४९)
वा॥
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