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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अन्तराय कर्म वह कर्म, जिसके द्वारा वर्तमान में प्राप्त वस्तु का विनाश होता है और भविष्य में होने वाले लाभ के मार्ग का अवरोध होता
अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-पडुप्पण्णविणासिए चेव पिहति य आगामिपहं चेव। (स्था २.४३१) अन्तरालगति एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने के समय होने वाली गति
और मुक्त आत्माओं की लोकान्त तक होने वाली एक समय वाली गति। अन्तरालगतिर्द्विविधा-ऋजुर्विग्रहा च। एकसामयिकी ऋजुः चतुः समयपर्यन्ता च विग्रहा। (जैसिदी ७.२८ वृ) (द्र विग्रहगति)
अन्तरिक्षनिमित्त महानिमित्त का एक प्रकार। सूर्य, चन्द्र आदि की गति के आधार पर अतीत-अनागत के ज्ञान का प्रतिपादक शास्त्र । रविशशिग्रहनक्षत्रभगणोदयास्तमयादिभिरतीतानागतफलप्रविभागप्रदर्शनमन्तरिक्षम्।
(तवा ३.३६)
अन्नपुण्य पुण्य का एक प्रकार। पात्र (संयमी) को अन्न देने से होने वाला पुण्य प्रकृति का बंध। पात्रायान्नदानाद् यस्तीर्थकरनामादिपुण्यप्रकृतिबन्धस्तदन्नपुण्यम् एवं सर्वत्रापि। (स्था ९. २५ वृ प ४२८) अन्यत्व अनुप्रेक्षा पांचवीं अनुप्रेक्षा। भेदविज्ञान-शरीर से आत्मा की भिन्नता का चिन्तन करना। शरीरव्यतिरेकेणात्मानमनुचिन्तयेत्। अन्यच्च शरीरान्नित्योऽहमिति श्रेयसे घटत इत्यन्यत्वानुप्रेक्षा। (तभा ९.७) अन्यथानुपपत्ति साध्य के अभाव में साधन का अभाव होना, जैसे अग्नि के अभाव में धूम का अभाव। असति साध्ये हेतोरनुपपत्तिरेवान्यथानुपपत्तिः। असत्यनुपपत्ते:-असति कृशानुमत्त्वे धूमवत्त्वस्यानुपपत्तेः।
(प्रनत ३. ३०, ३१) अन्यलिंगसिद्ध वह सिद्ध, जो जैनेतर संन्यासी के वेश में मुक्त होता है। तावसपरिवायगादिवक्कलकासायमादिदव्वलिंगट्ठिता सिद्धा अण्णलिंगसिद्धा।
(नन्दी ३१ चू पृ २७) अन्योन्यस्नेहप्रतिबद्ध स्नेह के कारण होने वाला जीव और पुद्गल का संबंध। जीव में आकर्षण करने की योग्यता है और पुद्गल में आकृष्ट होने की योग्यता है। अन्योऽन्यं स्नेहप्रतिबद्धा इति।यदाहस्नेहाभ्यक्तशरीरस्य, रेणुना श्लिष्यते यथा गात्रम्। रागद्वेषक्लिन्नस्य कर्मबन्धो भवत्येवम्॥
(भग १.३१२ वृ) अन्योन्य अभाव
(भिक्षु ३.३२) (द्र इतरेतर अभाव)
अन्तरिक्षक अस्वाध्यायिक अस्वाध्यायिक का एक प्रकार। उल्कापात आदि आकाशीय स्थितियां, जिनमें आगम-स्वाध्याय का निषेध है। दसविधे अंतलिक्खए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहाउक्कावाते, दिसिदाघे, गज्जिते, विजुते, णिग्घाते, जुवए, जक्खालित्ते, धूमिया, महिया, रयुग्घाते। (स्था १०.२०) अन्तर्मुहूर्त दो समय से लेकर एक समय कम अड़तालीस मिनट तक । का कालमान। मुहूर्तस्य मध्ये अन्तर्मुहूर्त्तम्। (तभा १.७ वृ) अन्तर्व्याप्ति पक्ष में ही साध्य के साथ साधन की व्याप्ति, जैसेअनेकान्तात्मक वस्तु। पक्षीकृत एव विषये साधनस्य साध्येन व्याप्तिरन्ताप्तिः...। यथानेकान्तात्मकं वस्तु, सत्त्वस्य तथैवोपपत्तेः....।
(प्रनत ३. ३८, ३९)
अन्वय
(प्रमीवृ २.१.१२)
(द्र तथोपपत्ति)
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