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......इच्छाकारो य सारणे ।
इच्छा - स्वकीयोऽभिप्रायस्तया करणं - तत्कार्यनिर्वर्तनमिच्छाकारः, सारणे इत्यौचित्यत आत्मनः परस्य वा कृत्यं प्रति प्रवर्त्तने, तत्रात्मसारणे यथेच्छाकारेण युष्मच्चिकीर्षितं कार्यमिदमहं करोमीति, अन्यसारणे च मम पात्रलेपनादि सूत्रदानादि वा इच्छाकारेण कुरुतेति ।
( उ २६.६ शावृ प ५३५ )
इच्छानुलोमा
असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार। किसी के कार्य को समर्थन देने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा, जैसे - यह कार्य तुम करो, मुझे भी यह अच्छा लगता है। इच्छानुलोमा नाम यथा कश्चित्किञ्चित्कार्यमारभमाणः कञ्चन पृच्छति, स प्राह- करोतु भवान् ममाप्येतदभिप्रेतमिति । (प्रज्ञा ११.३७ वृप २५९) इच्छापरिमाण
गृहस्थधर्म का पांचवां व्रत, जिसमें परिग्रह की इच्छा का सीमाकरण किया जाता है।
अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिमाणं (आव परिपृ २२)
उवसंपजड़ ।
इतरेतरसंयोग
दो, तीन आदि परमाणुओं का संयोग होना; द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि स्कंध इसके उदाहरण हैं।
दुप्पभितीण परमाणूणं जो संजोगो सो इतरेतरसंजोगो भवति परमाणूणं । (उच् पृ १७)
इतरेतराभाव
अभाव का तीसरा प्रकार। दो वस्तुओं में परस्पर एकरूपता का अभाव, जैसे- स्तम्भ में घट के स्वरूप का अभाव और घट में स्तम्भ के स्वरूप का अभाव । स्वरूपान्तरात् स्वरूपव्यावृत्तिरितरेतराभावः । यथा स्तम्भस्वभावात् कुम्भस्वभावव्यावृत्तिः ।
(प्रनत ३. ६३, ६४ )
इत्वर परिहारविशुद्धिक
वह मुनि, जो परिहार - विशुद्धि की साधना के बाद पुनः उस साधना को स्वीकार करता है अथवा गच्छ में आ जाता है। कल्पसमाप्त्यनन्तरं तमेव कल्पं गच्छं वा समुपयास्यन्ति ते
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इत्वरा: ।
इत्वरिक अनशन
सावधिक तप;
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
छम्मासा ।
(द्र यावत्कथिक अनशन)
(प्रज्ञावृ प ६८ )
इसकी अवधि है - उपवास से छह मास
पर्यन्त ।
इत्तरियं णाम परिमितकालियं, तं चउत्थाउ आरद्धं जाव (दजिचू पृ २१ )
इत्वरिक सामायिकचारित्र
सात दिन अथवा चार मास अथवा छः मास की अवधि वाला सामायिक चारित्र । इस अवधि की समाप्ति के बाद छेदोपस्थापन चारित्र में उपस्थापन होता है। यह प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय होता है।
इत्वरस्य भाविव्यपदेशान्तरत्वेनाल्पकालिकस्य सामायिकस्यास्तित्वादित्वरिकः स चारोपयिष्यमाणमहाव्रतः । (भग २५.४५४ वृ)
इन्द्र
देवों के अधिपति ।
इन्द्रा भवनवासिव्यन्तरज्योतिष्कविमानाधिपतयः ।
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(तभा ४.४ वृ)
इन्द्रस्थावरकाय
इन्द्र से संबंधित होने के कारण पृथ्वीकाय का अपर नाम है - इन्द्रस्थावरकाय ।
इन्द्रसंबंधित्वादिन्द्रः स्थावरकायः पृथिवीकायः ।
(स्था ५.१९ वृप २७९) पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा- इंदे थावरकाए, बंभे थावरकार, सिप्पे थावरकाए, सम्मती थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए । (स्था ५.१९)
इन्द्रस्थावरकायाधिपति
वह देव, जो पृथ्वीकायसंज्ञक स्थावरकाय का अधिपति है । स्थावरकायानां – पृथिव्यादीनामिति सम्भाव्यन्तेऽधिपतयो - (स्था ५.२० वृप २७९)
नायकाः ।
इन्द्रिय
ज्ञान का वह स्रोत, जिसके द्वारा आत्मा (इन्द्र) का बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क होता है और जिसके द्वारा शब्द आदि
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