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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
क्षुल्लक अवस्था अथवा श्रुत से अपरिपक्व। क्षुद्रका-वयसा श्रुतेन वाऽव्यक्ताः । (सम १८.३ वृ प३४)
क्षुल्लककल्पश्रुत उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार। अविस्तृत अर्थ और लघुतर आकार वाला आचारशास्त्र। चुल्लं ति-लहुतरं अवित्थरत्थं अप्पगंथं च चुल्लकप्पसुतं।
(नन्दी ७७ चू पृ५७)
क्षुल्लक भव सबसे छोटा भव (जन्मावधि), जो दो सौ छप्पन आवलिका का होता है। दो य सया छप्पन्ना आवलियाणं तु खुड्भवमाणं। ""क्षुल्लकभवग्रहणान्येकस्मिन्नच्छवासनिःश्वासे सातिरेकाणि सप्तदश मन्तव्यानि; यत उक्तम्-'खडागभवग्गहणा सत्तरस हवंति आणुपाणम्मि।' (विभा ३३१८ वृ) क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्ति कालिक श्रुत का एक प्रकार । वह अध्ययन, जिसमें सौधर्म आदि कल्पों के आवलिका और प्रकीर्णक इन दोनों प्रकार के विमानों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। आवलिकाप्रविष्टानामितरेषां वा विमानानां वा प्रविभक्तिः प्रविभजनं यस्यां ग्रन्थपद्धतौसा विमान-प्रविभक्तिः, सा चैका स्तोकग्रन्थार्था द्वितीया महा-ग्रन्थार्था, तत्राऽऽद्या क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्तिः।
(नन्दी ७८ मवृ प २०६)
और मानसिक-वाचिक-कायिक प्रवृत्ति को जानता है। क्षेत्रम्-शरीरम्, कामः, इन्द्रियविषयः, हिंसा, मनोवाक्कायप्रवृत्तिश्च । यः पुरुषः एतत्सर्वं जानाति स क्षेत्रज्ञो भवति।
(आभा ३.१६) ४. ज्ञानी। जो दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे।
(आ १.६७) क्षेत्रज्ञो-ज्ञानी....।
(आभा १.६७) क्षेत्रदिशा मेरु पर्वत के मध्य भाग में विद्यमान अष्टप्रदेशी रुचक से निकलने वाली दिशाएं। .."खेत्तदिसटुपएसियरुयगाओ मेरुमज्झम्मि।
(विभा २७००) क्षेत्रपरमाणु आकाश का एक प्रदेश। क्षेत्रपरमाणुः-आकाशप्रदेशः। (भग २०.३७ वृ) क्षेत्र पल्योपम असंख्य वर्षों का कालखण्ड। क्षेत्र पल्योपम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं-सूक्ष्म और व्यावहारिक । व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम-जैसे कोई पल्य (कोठा) एक योजन लंबा, चौड़ा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला है। वह पल्य-एक, दो, तीन दिन यावत उत्कृष्टतः सात रात के बढ़े हुए करोड़ों बालागों से ढूंस-ठूस कर घनीभूत कर भरा हुआ है। उस कोठे से जो आकाश-प्रदेश उन बालारों से व्याप्त हैं, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहार करने पर जितने समय में वह कोठा खाली होता है, वह व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम है। उस व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम का कोई प्रयोजन नहीं है। केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है। सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम-उन बालानों में से प्रत्येक बालाग्र के असंख्य खण्ड किए जाते हैं। उस कोठे के आकाश-प्रदेश उन बालानों से व्याप्त हों या अव्याप्त, उनमें से प्रति समय एक-एक आकाश प्रदेश का अपहार करने पर जितने समय में वह कोठा खाली होता है, वह सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम है। तत्थ णं जेसे वावहारिए, से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं
क्षेत्र आकाश-खण्ड, जिसमें पदार्थ का अवगाहन होता है, जैसेपरमाणु का एक आकाश-प्रदेश वाला क्षेत्र।
(विभा ४३२ वृ पृ २०८) (द्र स्पर्शना)
क्षेत्रज्ञ १. आत्मज्ञ। २. लोक और अलोक को जानने वाला। 'क्षेत्रज्ञो' यथावस्थितात्मस्वरूपपरिज्ञानादात्मज्ञ इति, अथवा लोकालोकस्वरूपपरिज्ञातेत्यर्थः। (सूत्र १.६.३ ७ प १४३) ३. वह पुरुष, जो क्षेत्र-शरीर, काम, इन्द्रियविषय, हिंसा
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