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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
योग्य हो। 'अभिषेकः' सूत्राऽर्थ-तदुभयोपेत आचार्यपदस्थापनार्हः ।
(बृभा ४३३६ वृ) अभिषेकप्राप्ता वह साध्वी, जो प्रवर्तिनी पद के योग्य हो। अभिषेकप्राप्ता प्रवर्त्तिनीपदयोग्या। (बृभा ४३३९ वृ) अभिषेकसभा अभिषेक-कक्ष, जहां इन्द्र का राज्याभिषेक किया जाता है। अभिषेकसभा यस्यां राज्याभिषेकेणाभिषिच्यते।
(स्था ५.२३५ वृ प ३३४) अभिहृत उद्गम दोष का एक प्रकार। साधु को देने के लिए दूर से अर्थात् अपने ग्राम से अथवा दूसरे ग्राम से लाकर उपाश्रय में । दी जाने वाली भिक्षा। अभिहतं-यत्साधुदानाय स्वग्रामात्परग्रामाद्वा समानीतम्।।
(पिनिवृ प ३५) अभ्याख्यान पाप पापकर्म का तेरहवां प्रकार। असद्दोषारोपण की प्रवृत्ति से होने वाला अशुभ कर्मप्रकृति का बंध। (आवृ प ७२) अभ्याख्यानं-प्रकटमसद्दोषारोपणम्।
(स्था १.१०३ वृ प २४) अभ्याख्यान पापस्थान वह कर्म, जिसके उदय से जीव अभ्याख्यान में प्रवृत्त होता
(झीच २२.२२) अभ्यासवर्तिता लोकोपचारविनय का एक प्रकार । ज्ञान-प्राप्ति के लिए आचार्य के पास बैठना। 'अब्भासवत्तियं' ति प्रत्यासत्तिवर्त्तित्वं, श्रुताद्यर्थिना हि आचार्यादिसमीपे आसितव्यमित्यर्थः।
(स्था ७.१३७ वृ प ३८८) अभ्युत्थानसंभोज सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार। किसी बड़े साधु को आते देखकर आसन से उठना। 'अब्भुटाणे यावरेत्ति' अभ्युत्थानमासनत्यागरूपमित्यपरं सम्भोगासम्भोगस्थानमित्यर्थः। तत्राभ्युत्थानं पार्श्वस्थादेः
कुर्वंस्तथैवासम्भोग्यः। (सम १२.२ ७ प २२) अभ्युत्थान सामाचारी आचार्य आदि का आदर करना, उनको आहार, औषध आदि लाकर देना। अब्भुटाणं गुरुपूया"। अभिमुख्येनोत्थानम्-उद्यमनमभ्युत्थानं तच्च 'गुरुपूय' त्ति सूत्रत्वाद् गुरुपूजायां, सा च गौरवार्हाणाम् आचार्यग्लानबालादीनां यथोचिताहारभेषजादिसम्पादनम्।
(उ २६.७ शावृ प ५३५) अभ्युद्यत मरण मरण का एक प्रकार। अनशनपूर्वक-भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनीमरण और प्रायोपगमनपूर्वक होने वाला मरण। अभ्युद्यतमरणं पुनस्त्रिविधम्-पादपोपगमनम् इंगिनीमरणं"" भक्तप्रत्याख्यानम्।
(बृभा १२८३ वृ) अभ्युद्यत विहार जिनकल्प, शुद्धपरिहारकल्प (परिहारविशुद्धि) और यथालंदकल्प की साधना का प्रयोग। जिनकल्प: शुद्धपरिहारकल्पो यथालन्दकल्पश्चेति त्रिविधोऽभ्युद्यतोऽथैष विहारः।
(बृभा १२८३ वृ)
अमन मानसिक क्रिया का निरोध। निर्विचार चेतना।
(स्था ३.३५८) अमनस्क
(तसू २.११) (द्र असंज्ञी) अमायिसम्यग्दृष्टि वह व्यक्ति, जो मायाशल्य रहित सम्यक्दृष्टि वाला है।
(भग ५. १०२) अमिलित ज्ञान का एक आचार। शास्त्र का उच्चारण, जिसमें पद और वाक्य का विच्छेद समुचित रूप से होता है। 'अमिलियपयवक्कविच्छेयं ति'... अमिलितोऽसंसक्तः पदवाक्यविच्छेदो यत्र, तद वाऽमिलितमुच्यते।
(विभा ८५४ वृ पृ ३४७)
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