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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
आगामिनो-लब्धव्यस्य वस्तुनः पन्था आगामिपथस्तमिति, क्वचिदागामिपथानिति दृश्यते, क्वचिच्च आगमपहं ति, तत्र च लाभमार्गमित्यर्थः। (स्था २.४३१ वृप ९२)
आचार में ध्रुवयोग (सतत जागरूकता) आदि विशेषताओं से उपलब्ध होती है। आयारसंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तंजहा-संजमधुवजोगजुत्ते यावि भवति, असंपग्गहियप्पा, अणियतवित्ती, वुड्डसीले यावि भवति। से तं आयारसंपदा॥
(दशा ४.४)
आग्नेयी धारणा पिण्डस्थ ध्यान का एक प्रकार। इसमें साधक यह अनुभव करता है कि नाभि-कमल प्रज्वलित हो रहा है। मेरे सब दोष दग्ध हो रहे हैं। नाभिकमलस्य प्रज्वलनेन अशेषदोषदाहचिन्तनमाग्नेयी।
(मनो ४. १९) आचामाम्ल (आयम्बिल) रसपरित्याग का एक प्रकार। दिन में एक समय, एक बार केवल कांजी युक्त एक धान्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं खाना।
(औप ३५)
आचार १. योगसंग्रह का एक प्रकार। आचार का सम्यक् प्रकार से पालन करना, उसमें माया न करना। 'आयारे'त्ति....तत्राचारोपगतः स्यात् न मायां कुर्यादित्यर्थः।।
(सम ३२.१.२ वृ प ५५) २. द्वादशांग श्रुत का पहला अंग। इसमें श्रमणों के आचार तथा महावीर के तपस्वी जीवन का निरूपण किया गया है। आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणयवेणइय-ट्ठाण-गमण-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासासमिति-गुत्ती-सेजोवहि-भत्तपाण-उग्गम-उप्यायण-एसणा-विसोहि-सुद्धासुद्धग्गहण-वयणियमतवोवहाणसुप्पसत्थमाहिज्जइ।
(समप्र ८९)
आचार्य धर्मसंघ में सात पदों से एक पद। जो पांच आचार-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य का स्वयं अनुपालन करता है, दूसरों को आचार का सक्रिय प्रशिक्षण देता है, जो अपने गुरु द्वारा गुरुपद पर स्थापित है, सूत्र-अर्थ तदुभय का ज्ञाता है, शिष्यों को सूत्र के अर्थ का अध्ययन कराने वाला है, वह आचार्य है। पंचविहं आयारं आयारमाणा तहा पभासंता। आयारं दंसंता आयरिया तेण वुच्चंति॥ (आवनि ९९४) सुत्तत्थतदुभयादिगुणसम्पन्नो अप्पणो गुरुहिं गुरुपदे स्थावितो आयरिओ।
(अदचू पृ २१९) 'आचार्यः' गच्छाधिपतिः। (बृभा ४३३६ वृ) 'आचार्याः' अर्थदातारः।
(बृभा २७८० वृ) (द्र उपाध्याय) आच्छेद्य उद्गम दोष का एक प्रकार । निर्बल व्यक्ति से छीनकर दिया जाने वाला आहार आदि लेना। यद्बलादाच्छिद्य दीयते साधुभ्यस्तदाच्छेद्यम्।
(पिनि ९३ वृ प ६८)
आचारदशा
(स्था १०.११०)
आजीव उत्पादन-दोष का एक प्रकार। अपनी जाति, कुल आदि का परिचय देकर भिक्षा लेना। आजीवो-जाति-कुल-गण-शिल्पादिप्रकटनेन यल्लभ्यते।
(प्रसा ५६६)
(द्र दशाश्रुतस्कन्ध)
आचारधर वह मुनि, जो आचारांग के सूत्र-पाठ और अर्थ का विशेषज्ञ । होता है। अप्पेगइया आयारधरा।
(औप ४५)
आजीववृत्तिता अनाचार का एक प्रकार। जाति, कुल, गण, शिल्प और कर्म का अवलम्बन ले भिक्षा प्राप्त करना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। जातिकुलगणकर्मशिल्पानामाजीवनम् आजीवः तेन वृत्तिस्तद्भाव आजीववृत्तिता। (द ३.६ हावृ प ११७)
आचारसम्पदा गणिसम्पदा का एक प्रकार। आचार्य की वह संपत्ति. जो
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