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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अनुभावकर्म वह कर्म, जिसके यथाबद्ध रस का वेदन होता है। यस्य त्वनुभावो यथाबद्धरसो वेद्यते तदनुभावतो वेद्यं कर्मानुभावकर्म।
(स्था २.२६५ वृप ६३) (द्र प्रदेशकर्म)
१. सूत्र और अर्थ का मानसिक परावर्तन अनुचिन्तन करना, वचन का प्रयोग नहीं करना। अणप्पेहा नाम जो मणसा परिअडेड, णो वायाए।
(दहावृ प १६) सुत्तऽत्थाणं मणसाऽणुचिंतणं। (दअचू पृ १६) २. जैसे तप्त लोहपिण्ड अग्निमय हो जाता है वैसे ही ध्येय के प्रति चित्त का समर्पण कर अधिगत या ज्ञात अर्थ का तन्मयता के साथ मन से अभ्यास करना।। अधिगतपदार्थप्रक्रियस्य तप्तायस्पिण्डवदर्पितचेतसो मनसाऽभ्यासोऽनुप्रेक्षा।
(तवा ९. २५) ३. मन की स्थिरता के लिए अनित्य, अशरण आदि द्वादश अर्थों (विषयों) का अनुप्रेक्षण या अनुचिन्तन करना। मनःस्थैर्याय अनित्याद्यानुप्रेक्षणं अनुप्रेक्षा। अनुप्रेक्षणं-अर्थविमर्शनं अनुप्रेक्षा। (जैसिदी ६.१९ वृ) अनुबन्ध एक जीव का विवक्षित पर्याय में अविच्छिन्न रूप में होने वाला अवस्थान । यथा-उत्पल जीन का उत्पल के रूप में पुनर्जन्म। अणुबंधो त्ति विवक्षितपर्यायेण अव्यविच्छिन्नेनावस्थानम्।
(भग २४.२९ वृ) अनुभव संज्ञा वह बोध, जो संवेदन युक्त होता है। अनुभवसंज्ञा संवेदनात्मिका भवति। (आभा पृ २३)
अनुभावनामनिधत्तायु आयुबंध का एक प्रकार । नाम कर्म के तीव्र विपाक के साथ होने वाला आयु का निषेचन। यद्यस्मिन् भवे तीव्रविपाकं नामकर्मानुभूयते तथा नारकायुषि अशुभवर्णगन्धरसस्पर्शोपघातानादेयदःस्वरायश:कीर्त्यादिनामानि तदनुभावनाम तेन सह निधत्तमायुरनुभावनामनिधत्तायुः।
(प्रज्ञा ६.११८ वृ प २१८) अनुभाव बन्ध बंध का एक प्रकार। अनुभाग बंध, कर्मों की फल देने की शक्ति का निर्माण। अनुभावो-विपाकः तीव्रादिभेदो रसः।
(स्था ४.२९० वृ प २०९) अनुमन्य आलोचना आलोचना का एक दोष । गुरु उग्र दण्ड देने वाला है या मृदु दण्ड देने वाला, इसका विवेचन कर मद दण्ड देने वाले से
आलोचना करना। 'अणुमाणइत्ता' अनुमानं कृत्वा, किमयं मृदुदण्ड उतोग्रदण्ड इति ज्ञात्वेत्यर्थः । अयमभिप्रायोऽस्य-यद्ययं मृदुदण्डस्ततो दास्याम्यालोचनामन्यथा नेति। (स्था १०.७० व प ४६०)
अनुमान परोक्ष प्रमाण का एक प्रकार । साधन के द्वारा साध्य का ज्ञान। साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम्। (प्रमी १.२.७)
अनुभाग बन्ध बंध का एक प्रकार । कर्मों का विपाक, आत्मा के साथ तीव्र अथवा मंद परिणामों से बंधने वाले कर्म का तीव्र अथवा मंद अनुभाव, रस। विपाकोऽनुभागः। रसोऽनुभागोऽनुभावः फलम्-एते एकार्थाः।
(जैसिदी ४.१० वृ) (द्र अनुभाव बन्ध)
अनुयोग
१. दृष्टिवाद के पांच विभागों में से एक विभाग। जिसमें तीर्थंकर आदि के जीवन-चरित्र का प्रतिपादन है, जैसेमूलप्रथमानुयोग, गंडिकानुयोग। अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-मूलपढमाणुओगे गंडियाणुओगे य॥
(नन्दी ११९) (द्र दृष्टिवाद) २. प्राचीन अध्ययनपद्धति का चतुर्थ चरण। वह प्रतिपादन
अनुभाव शाप देने और अनुग्रह करने का सामर्थ्य । अणुभावो णाम शापानुग्रहसामर्थ्यम्। (उचू पृ २०८) ।
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