Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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( ३१ )
जबकि सदाशयता और कुटुम्ब नाश को बचाने हेतु राजाज्ञा भंग के परिणामस्वरूप ऐसा कठोर दण्ड स्वाभाविक नहीं लगता ।
लक्ष्मण
लक्ष्मण के चरित्रांकन में वैदिक और जैन परम्परा में अधिकांश स्थलों पर साम्य है, किन्तु कुछ स्थलों पर अन्तर भी है । प्रमुख अन्तर निम्न हैं
(१) राम के वन-गमन के प्रसंग पर लक्ष्मण कुपित नहीं होते वरन् अपने कर्तव्य पालन और भ्रातृप्रेम के वशीभूत होकर माता से वन-गमन की आज्ञा माँगते है; जबकि वैदिक परम्परा में पहले उन्हें क्रोधाभिभूत दिखाया गया है ।
(२) जैन परम्परा के अनुसार लक्ष्मण के हाथों अनायास अनजाने ही तपस्वी शम्बूक का वध हो जाता है । शम्बूक चन्द्रनखा (शूर्पनखा ) का पुत्र है और उसकी मृत्यु से राम-रावण युद्ध का समुचित कारण उत्पन्न हो जाता है । शम्बूक वध् वैदिक परम्परा में भी दिखाया गया है किन्तु वहाँ राम के द्वारा हुआ है, वह भी तब जबकि राम राजा बन चुके थे । कारण था- -एक ब्राह्मण के पुत्र का मर जाना । राम ने तपस्वी शम्बूक का जान-बूझकर वध किया | जो कारण (ब्राह्मण-पुत्र की मृत्यु ) वैदिक परम्परा में दिखाया गया है वह इतना लचर है कि गले नहीं उतरता और अनेकं विद्वानों ने इसकी आलोचना की है । यह बात भी सहज विश्वास योग्य नहीं है कि राम जैसा विवेकी और कृपालु महापुरुप अकारण ही तपस्यारत किसी निरपराध व्यक्ति का प्राणान्त कर दे ।
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(३) खर-दूषण का वध वैदिक परम्परा में राम द्वारा दिखाया गया है जबकि जैन परम्परा में लक्ष्मण द्वारा । शम्बूक वध के पश्चात खर-दूषण आते हैं और लक्ष्मण उनसे युद्ध करने जाते है । राम जब चलने को उद्यत होते है तो वे कहते है - 'तात ! मुझे आज्ञा दीजिए, मेरे रहते हुए आपका युद्ध हेतु जाना उचित नहीं ।' उनका यह कथन उनके स्वभाव के अनुकूल था । (४) जैन परम्परा में रावण का वध
लक्ष्मण द्वारा हुआ बताया है जो उनके बल पराक्रम को देखते हुए अस्वाभाविक नहीं लगता ।
(५) वैदिक परम्परा में लक्ष्मण के क्रोधी स्वभाव को ही उजागर किया गया है, जबकि जैन परम्परा में वे अतिशय बली और गुरुजनों के प्रति विनयावनत है ।