________________ 20 : जैनधर्म के सम्प्रदाय और आस्था न तो आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रति है और न ही अन्तिम तीर्थंकर महावीर के प्रति है। इस विषयक जैन मान्यता यह है कि पार्श्वनाथ का तीर्थंकर नामकर्म अन्य तीर्थंकरों की अपेक्षा विशिष्ट था इसलिए उनके प्रति लोगों में श्रद्धा और आस्था अधिक है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि हिन्दू और बौद्ध साहित्य में कहीं पर भी पार्श्वनाथ का नामोल्लेख नहीं मिलता है जबकि दूसरे कई तीर्थंकरों के नाम हिन्दू और बौद्ध साहित्य में उपलब्ध होते हैं। हमारे मतानुसार हिन्दू परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में पार्श्वनाथ का नामोल्लेख नहीं होने का मूलभूत कारण यह है कि वेद और उपनिषद् आदि पार्श्वनाथ के समय के लगभग पूर्व के हैं, इसलिए इनमें पार्श्वनाथ का नामोल्लेख नहीं मिलता है, जहाँ तक हिन्दू परम्परा के परवर्ती साहित्य में पार्श्वनाथ का नामोल्लेख नहीं होने का प्रश्न है तो इस सन्दर्भ में हम यही कहना चाहेंगे कि अपने से भिन्न परम्परा का होने के कारण जिस प्रकार हिन्दू साहित्य में महावीर को स्थान नहीं दिया गया है, उसी प्रकार पार्श्वनाथ को भी स्थान नहीं दिया गया। यही स्थिति बौद्ध साहित्य के सन्दर्भ में भी है। बौद्ध साहित्य में भी पार्श्वनाथ का स्पष्ट नामोल्लेख तो नहीं हुआ है, किन्तु उनके चातुर्याम का उल्लेख मिलता है। हिन्दू और बौद्ध साहित्य में भले ही पार्श्वनाथ का नामोल्लेख उपलब्ध नहीं होता हो, किन्तु प्राचीन स्तर के अनेक जैन आगमों, यथा-आचारांगसूत्र', सूत्रकृतांगसूत्र', समवायांगसूत्र, व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र', आवश्यकनियुक्ति', ऋषिभाषित', कल्पसूत्र तथा तिलोयपण्णत्ति' आदि में पार्श्वनाथ एवं उनके अनुयायियों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं। 1. आचारांगसूत्र, 2 / 15 / 745 2. सूत्रकृतांगसूत्र, 2171845 3. समवायांगसूत्र, 38 / 234 4. व्याख्याप्रज्ञप्तिसत्र, 9 / 32 / 51 (2) 5. उत्तराध्ययनसूत्र, 23 / 12 6. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 221, 224, 231 7. इसिभासियाई, अध्ययन 31 8. कल्पसूत्रम्, 148-160 9. तिलोयपण्णत्ति, 4 / 548, 576, 116