________________ जैनधर्म का उद्भव और विकास : 21 बाल्यावस्था में पार्श्वनाथ की करुणा का एक मर्मस्पर्शी दृष्टान्त हमें कई जैन ग्रंथों में मिलता है। उनमें पार्श्व के जीवनवृत्त के साथ-साथ तापस कमठ से हुए उनके विवाद और नाग के उद्धार की घटना भी उल्लिखित है। यद्यपि पार्श्वनाथ के जीवनवृत्त का उल्लेख करने वाले प्राचीन आगम समवायांगसूत्र, कल्पसूत्र और आवश्यकनियुक्ति में इस घटना की कहीं कोई चर्चा नहीं हुई है, किन्तु चौपनमहापुरुषचरित्र', पार्श्वनाथचरित्र तथा उत्तरपुराण' में इस घटना का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि विवेकशन्य तपस्या करते हुए जब तापस कमठ अग्निकुण्ड में लक्कड़ आदि को जला रहा था तो राजकुमार पार्श्व ने उसमें एक सर्प को लकड़ो के साथ जलते हुए देखा, सर्प को जलता देखकर राजकुमार पार्श्व का हृदय करुणा से द्रवित हो गया और उन्होंने उस तापस से कहा- "हे तपस्वी ! यह कैसा अज्ञान तप है, दया के बिना भी कहीं धर्म है ?" तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा गृहस्थावस्था में ही इस प्रकार की धर्मक्रान्ति करने का यह दृष्टान्त अद्वितीय है। वस्तुतः पार्श्वनाथ ने विवेकशन्य देहदण्डन रूप तप करने का विरोध किया और तप के साथ ज्ञान और अहिंसा को समन्वित किया / महावीर : . वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर महावीर माने जाते हैं / 5 महावीर का जन्म ई० पू० 599 चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को रात्रि के अन्तिम प्रहर में हुआ था। इनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशलादेवी थों / इनका जन्म स्थान कुण्डपुर ग्राम माना जाता है। .. महावीर के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में अनेक बातों में मतभेद हैं। श्वेताम्बर परम्परा का मानना है कि महावीर का जीव सर्वप्रथम ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में आया था, तत्पश्चात् इन्द्र के आदेश से हरिणगमेशदेव के द्वारा उनका गर्भ सिद्धार्थ 1. चउप्पनमहापुरिसचरियं, 262 2. पासनाहचरिउ, 10 / 13 / 110-112 3. उत्तरपुराण, 73 / 96-117 . 4. भगवान पार्श्व एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृष्ठ 115-116 5. समवायांगसूत्र, 24 / 160 6. जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास, पूर्व पृ० 20 7. कल्पसूत्रम्, 25