Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 234
________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार संबंधी मान्यताएं' : 223 सल्लेखना के भी पाँच अतिचार कहे गये हैं। उपासकदशांगसूत्र में इहलोकाशंसाप्रयोग, परलोकाशंसाप्रयोग, जीविताशंसाप्रयोग, मरणाशंसाप्रयोग तथा कामभोगाशंसाप्रयोग-ये पाँच अतिचार बतलाए हैं।' तत्त्वार्थसूत्र में जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबंध और निदानकरणये पाँच अतिचार वर्णित हैं। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में जीविताशंसा, भय, मित्रस्मति और निदान-ये पांच अतिचार कहे गये हैं। सागार धर्मामृत में जीविताशंसा, मरणाशंसा, सुहृदानुराग, सुखानुबंध और 'निदान ये पांच अतिचार उल्लिखित हैं। __पं० आशाधर ने सागारधर्मामृत में लिखा है कि आर्यिका समाधिमरण के समय में एकान्त स्थान में पुरुषों की तरह नग्न हो सकतो है।" प्रतिमाएं : सर्वप्रथम श्रावक, पाँच अणुव्रत, तोन गुणव्रत तथा चार शिक्षाक्त ग्रहण करता है, तत्पश्चात् वह ग्यारह प्रतिमाओं को धारण करता है। प्रतिमा वस्तुत: श्रावक द्वारा ग्रहण किये गये नियमों को जोवन पर्यन्त स्थिर रखने को एक प्रक्रिया है। अभिग्रह, तप या व्रत विशेष का नाम भी प्रतिमा है। प्रतिमा आध्यात्मिक विकास का एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा श्रावक अपने जीवन को उन्नत एवं पवित्र बनाता है। . श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य ग्रन्थ-समवायांगसूत्र', उपासकदशांगसूत्र तथा दशाश्रुतस्कन्ध में श्रावक को ग्यारह प्रतिमाओं का 1. "तयाणंतरं च णं अपच्छिममारणांतिय-संलेहणा-झूसणाराहणाए पंच अइयारा जाणियव्वा न समारियव्वा, तं जहा इहलोगा-संसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे।" -उवासगदसाओ, 1157 2. तत्वार्थसूत्र,.७।३२ 3. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 5 / 8 4. सागारधर्मामृत, 8145 . 5. “यदोत्सर्गिकमन्यद्वालिङ्गमुक्तं जिनैः स्त्रियाः। पुंवत्तदिष्यते मृत्युकाले स्वल्पीकृतोपधेः॥" -सागारधर्मामृत, 8135 6. समवायांगसूत्र, 1971 ..7. उवासगदसाओ, 1170-71 - 8. दशाश्रुतस्कन्ध, छठी दशा

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