Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 240
________________ उपसंहार : 229 इस सम्बन्ध में सामान्य अवधारणा यह है कि प्रथम और अन्तिम तीर्थकर से मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के आचार-नियमों और व्यवस्थाओं में कुछ भेद रहता है। ऐतिहासिक दृष्टि से हम केवल इतना ही प्रतिपादन कर सकते हैं कि जैन धर्म का स्वरूप और उसके आचार-विचार भी युग-युग में परिवर्तित हुए हैं / यद्यपि यह सत्य है कि धर्म के सामान्य तत्त्व सभी में समान रूप से निहित रहे हैं, फिर भी दर्शन और आचार संबंधी विशेषताओं के कारण उनमें अन्तर तो है। प्रथम अध्याय में हमने इसी दृष्टि से तीर्थंकरों के मान्यता भेद के सम्बन्ध में थोड़ो गहराई से चिन्तन किया है / हम यह मानते हैं कि देश और कालगत परिस्थितियों के कारण तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित आचार-व्यवहार के नियमों में भी भिन्नता रही है। महावीर और पार्श्वनाथ को मान्यता में जो बिन्दु मुख्य रूप से विवादास्पद थे, उनकी समोक्षा करने पर भी इसी तथ्य की पुष्टि होती है। जैन धर्म में जो सचेल और अचेल परम्पराएँ विकसित हुई हैं उनके मूल में भी कहीं न कहीं महावीर और पार्श्वनाथ को आचार सम्बन्धी मान्यताएं हैं। ___ इसो अध्याय में हमने महावीर निर्वाण के पश्चात् जैन धर्म की स्थिति को चर्चा करते हुए कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की स्थविरावली से यह भो स्पष्ट किया है कि महावीर निर्वाण के बाद भी गौतम और सुधर्मा जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण जैनधर्म में संघभेद को स्थिति नहीं बनी थी। जम्बूस्वामो के पश्चात् श्वेताम्बर और दिगम्बर पट्टावलियों में जो मतभेद दिखाई देता है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जम्बूस्वामी के बाद जैन धर्म में मतभेद विस्तार पाने लगा था / भद्रबाहु ने मतभेदों को दूर करने का प्रयास तो किया, किन्तु वे सफल नहीं हो सके / कल्पसूत्र स्थविरावली में हमें विविध गणों के विकसित होने को सूचना तों मिलतो है, किन्तु उसमें जैन धर्म के श्वेताम्बर, दिगम्बर आदि विविध सम्प्रदायों में विभक्त होने को कोई सूचना नहीं मिलती है / नन्दोसूत्र और कल्पसूत्र को स्थविरावलो में भगवान महावीर से लेकर देवद्धिगणि क्षमाश्रमण (वी. नि० सं० 980) तक के युगप्रधान आचार्यों की परम्परा उल्लिखित है। कल्पसूत्र और नन्दोसूत्र को स्थविरावलो में केवल गणभेद को हो चर्चा है, सम्प्रदाय भेद को उनमें कहीं कोई चर्चा नहीं हुई है। .. जैन आगम सहित्य, जैन मन्दिर एवं मूर्तियां, जैन गुफाएँ, जैन अभि-..

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