Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 241
________________ 230 : जैनधर्म के सम्प्रदाय लेख तथा जैन चित्रकला जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास को समझने के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं, इनके आधार पर जैन सम्प्रदायों का प्रामाणिक इतिहास किस प्रकार लिखा जा सकता है, इसकी चर्चा हमने इस ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में की है। तृतीय अध्याय में जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों का विकास कैसे हुआ ? इसकी विस्तृत चर्चा की गयी है / इससे स्पष्ट रूप से यह फलित होता कि जैन धर्म में दार्शनिक मतभेदों का बीजारोपण महावीर के जीवनकाल में ही हो चुका था। गोशालक, जमालि और तिष्यगुप्त इसके स्पष्ट प्रमाण हैं / आजीवक परम्परा भले ही महावीर से प्राचीन रही हो, किन्तु महावीर के समय में हो गोशालक जैसे व्यक्तित्व को पाकर वह परम्परा सुदृढ़ और प्रभावशाली बनीं, इस तथ्य को भो अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। गोशालक का आजीवक सम्प्रदाय एक प्रतिस्पर्धी के रूप में महावीर के समक्ष दृढ़ता से खड़ा हुआ था। इस तथ्य की पुष्टि न केवल जैन साहित्य से अपितु बौद्ध साहित्य से भी होतो है / जमालि और तिष्यगुप्त द्वारा उठाये गये दार्शनिक प्रश्न भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थे। यह एक भिन्न बात है कि महावीर के प्रभावशाली व्यक्तित्व के सामने जमालि की परम्परा विकसित और पल्लवित नहीं हो सकी। इसी अध्याय में की गई निह्नवों को चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर के परिनिर्वाण के बाद भो कूछ दार्शनिक प्रश्नों को लेकर जैन संघ में विवाद चलता रहा था। किन्तु किसी भी निह्नव का कोई स्वतन्त्र सम्प्रदाय चला हो, ऐसो जानकारी हमें उपलब्ध नहीं हुई है। ज्ञात विवरण के अनुसार अधिकांश निह्नव अपने मतभेदों को रखते हुए भी जैन संघ में ही सम्मिलित रहे। सामान्यतया निह्नवों ने जो प्रश्न उठाये थे वे सभी दार्शनिक ही थे, इसलिए आचारनिष्ठ जैन संघ उनसे इतना विचलित नहीं हुआ। वे उसे विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित नहीं कर सके। __श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम साहित्य और दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों में उल्लिखित कथानकों से यह ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम सचेलता और अचेलता के प्रश्न को लेकर वोर निर्वाण संवत् 606 अथवा 609 में जो विवाद हुए थे, वे विवाद ही आगे चलकर श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदायों के उद्भव के कारण बनें /

Loading...

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258