Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ 222 : जैनधर्म के सम्प्रदाय करावे तथा स्वयं भी उनके अपराधों को क्षमा करे।' इसी ग्रन्थ में सल्ले. खनाधारी के भोजन त्याग का क्रम भी समझाया गया है। . आचार्यों ने सल्लेखना का जितना वर्णन श्रमण के लिए किया है उतना ही श्रावक के लिए भी किया है। उपासकदशांगसूत्र, तत्त्वार्थसूत्रों, रत्नकरण्डकश्रावकाचार", श्रावकप्रज्ञप्ति,' अमितगतिश्रावकाचार', वसुनन्दिश्रावकाचार,सागारधर्मामृत, पुरुषार्थसिद्धयुपाय° और सर्वार्थसिद्धि' आदि अनेक ग्रन्थों में श्रावक को सल्लेखना का विस्तार से वर्णन मिलता है। ___ अधिकांश ग्रन्थों में सल्लेखना को श्रावक के बारह व्रतों में स्थान नहीं देकर, इसका स्वतन्त्र रूप से कथन किया गया है किन्तु वसुनन्दिश्रावकाचार में सल्लेखना को चौथा शिक्षाक्त माना गया है।१२ वसुनन्दिश्रावकाचार में सल्लेखना के समय भी पान (पानी) आहार ग्रहण करने की स्वीकृति दी गई है। श्वेताम्बर परम्परा में पउमचरियं में विमलसूरि ने भी सल्लेखना का अन्तर्भाव श्रावक के बारह व्रतों में ही किया है / जो आचार्य सल्लेखना का अन्तर्भाव श्रावक के बारह व्रतों में करते हैं वे. दिग्व्रत और देशावकाशिकव्रत को एक मानकर व्रतों की संख्या बारह ही रखते हैं। अतिचार : जिस प्रकार प्रत्येक व्रत के पांच अतिचार कहे गये हैं उसी प्रकार 1. वही, श्लोक 124 2, वही, श्लोक 127 3. उवासगदसाओ, 1157 4. तत्त्वार्थसूत्र, 717 5. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, 5 / 1-9 6. श्रावकप्रज्ञप्ति, श्लोक 378 7. अमितगतिश्रावकाचार, 6 / 98 8. वसुनन्दिश्रावकाचार, श्लोक 271-273 9. सागारधर्मामृत, 8 / 4-41 10. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक 175-179 11. सवार्थसिद्धि, 7 / 22 12. वसुनन्दिवावकाचार, श्लोक 271-272 :13. वही, श्लोक 271-272

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258