________________ जैनधर्म का उद्भव और विकास : 33 दूसरे शिष्य सम्भूतिविजय के बारह शिष्य हुए, उनमें से आर्य स्थूलिभद्र के दो शिष्य हुए-(१) आर्य महागिरि और (2) आर्य सुहस्ति / आर्य महागिरि के स्थविर उत्तरबलिस्सह आदि आठ शिष्य हुए, इनमें स्थविर उत्तरबलिस्सह से उत्तरबलिस्सहगण निकला। इस उत्तरबलिस्सह गण की भी चार शाखाएं हुई—(१) कोशाम्बिका, (2) सूक्तमुक्तिका, (3) कौटुम्बिका और (4) चन्द्रनागरी। ___ आर्य सुहस्ति के आर्य रोहण आदि बारह शिष्य हुए, उनमें काश्यपगोत्रीय आर्य रोहण से 'उद्देह' नामक गण हुआ। उस गण को भी चार शाखाएँ हुई-(१) औदुम्बरिका, (2) मासपूरिका, (3) मतिपत्रिका और (4) पूर्णपत्रिका। उद्देहगण को उपरोक्त चार शाखाओं के अतिरिक्त छह कुल भी हुए-(१) नागभूतिक, (2) सोमभूतिक, (3) आगच्छ, (4) हस्तलोय, (5) नन्दीय और (6) पारिहासिक। ___ आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर श्रीगुप्त से चारणगण निकला। चारणगण की चार शाखाएं हुई-(१) हरितमालाकारी, (2) संकाशिया, (3) गवेधुका और (4) वज्रनागरी। चारणगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त सात कुल भी हुए-(१) वस्त्रलाय, (2) प्रीतिधार्मिक, (3) हालीय, (4) पुष्पमैत्रीय, (5) मालीय, (6) आर्य चेटक और (7) कृष्णसह। ____ आर्य सुहस्ति के ही अन्य शिष्य स्थविर भद्रयश से उडुवाटिकगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई-(१) चम्पिका, (2) भद्रिका, (3) कार्कदिका और (4) मेखलिका। उडुवाटिकगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त तीन कुल हुए-(१) भद्रयशस्क, (2) भद्रगुप्तिक और (3) यशोभद्रिक। - आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर कामद्धि से वेशवाटिकगण .निकला, उसकी भी चार शाखाएँ हुई-(१) श्रावस्तिका, (2) राज्यपालिका, (3) अन्तरिजिका और (4) क्षेमलिज्जिका। वेशवाटिकगण के कुल भी चार हुए-(१) गणिक, (2) मेधिक, (3) काद्धिक और (4) इन्द्रपुरक / - आर्य सुहस्ति के ही एक अन्य शिष्य स्थविर तिष्यगुप्त से मानवगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई-(१) काश्यपीयका, (2) गौतमीयका, (3) वशिष्टिका और (4) सौराष्ट्रिका / मानवगण के तोन कुल भी हुए. (1) ऋषिगुप्तिय, (2) ऋषिदत्तिक और (3) अभिजयंत / आर्य सुहस्ति के हो दो अन्य शिष्यों सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध से कोटिकगण निकला,