________________ विभिन्न सम्प्रदायों को दर्शन संबंधी मान्यताएं : 147 न अकल्याणभाजन है, फिर वह उत्तम धर्म की साधक क्यों नहीं हो सकती ?' ___ स्त्री मुक्ति के पक्ष में हरिभद्र ने बहुत विस्तार से लिखा है। वे कहते हैं कि स्त्रियाँ कल्याणपात्र होती हैं, क्योंकि वे तो तीर्थंकरों को जन्म देती हैं, अतः स्त्री उत्तम धर्म को साधक हो सकती है, दूसरे शब्दों में वह मोक्ष की अधिकारिणी है। इसके अतिरिक्त हरिभद्र ने सिद्धों के पन्द्रह भेदों की चर्चा करते हुए सिद्धप्राभूत का भो एक सन्दर्भ दिया है। सिद्धप्राभूत में कहा गया है कि सबसे कम तीर्थकरी ( स्त्री तीर्थंकर ) ही सिद्ध होते हैं, उनकी अपेक्षा स्त्री तीर्थंकर के तीर्थ में नौ तीर्थंकर सिद्ध होते हैं, उनको अपेक्षा स्त्री तीर्थंकर के तीर्थ में नौ तीर्थकरीसिद्ध असंख्यातगुणा अधिक होते हैं। हमें ऐसा लगता है कि सिद्धप्रामृत (सिद्धपाहुड) कोई यापनोय ग्रन्थ रहा होगा, जिसमें सिद्धों के विभिन्न अनुयोगद्वारों को चर्चा हुई होगी। वर्तमान में यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है तथा ज्ञात सूचनानुसार इस नाम का कोई ग्रन्थ ज्ञात नहीं है। स्त्री मुक्ति के पक्ष और निषेध में जो कुछ लिखा गया है यदि हम उस पर तटस्थभाव से विचार करें तो कह सकते हैं कि यदि स्त्रो दीक्षा के अयोग्य होती तो आगमों में दोक्षा के अयोग्य व्यक्तियों की सूची में दुध पिलाती हुई एवं गर्भिणी स्त्री को दीक्षा का निषेध नहीं करके 'स्त्री' को दीक्षा का ही निषेध किया जाना चाहिए था। जहां तक वस्त्र धारण करने के कारण स्त्री को मुक्ति प्राप्त करने की अधिकारी नहीं माना गया है तो उस सन्दर्भ में हम यही कहना चाहेंगे कि यदि परिग्रह का होना ही मुक्ति में बाधक है तो फिर प्रतिलेखन आदि भी मुक्ति में बाधक क्यों नहीं होंगे? यदि प्रतिलेखन आदि को परिग्रह नहीं माना गया है तो संयमोपकरण के रूप में स्त्री द्वारा ग्रहीत सोमित वस्त्रों को भी परिग्रह नहीं मानना चाहिए। . यद्यपि वस्त्र परिग्रह है फिर भी भगवान् ने साध्वियों के लिए उसकी 1.. ललितविस्तरा पु० 57-59 2. “सन्वत्योआ तित्थयरिसिद्धा, तित्थयरितित्ये णोतित्थयरसिद्धा .' असंखेज्जगुणा तित्थयरितित्ये णोतित्थयरिसिवा असंखेज्जगुणाओ // " -ललितविस्तरा, पृ० 56