________________ षष्ठम अध्याय विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएँ आगम ग्रन्थों में साधकों को उनकी योग्यता के आधार पर अंमण और श्रावक-इन दो भागों में विभक्त किया गया है। श्रमण की साधना उत्कृष्ट मानी गयी है, क्योंकि वह सांसारिक बन्धनों से पूर्णतः मुक्त होता है तथा हिंसा, परिग्रह आदि का पूर्ण त्यागी होता है, किन्तु श्रावक सांसारिक बन्धनों से पूर्णतः मुक्त नहीं होता है इसलिए वह हिंसा, परिग्रह आदि का पूर्ण त्याग नहीं कर पाता है। इन्हीं कारणों से श्रावक साधना श्रमण साधना की अपेक्षा कुछ कम उत्कृष्ट मानी गयी है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में गृहस्थ के लिए श्रावक', श्रमणोपासक', उपासक, अगार तथा सागार आदि शब्दों का प्रयोग 1. (क) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 5 / 4 / 26 (2), (ख) उवासगदसायो, 2292 (ग) स्थानांगटीका, पत्र 272, (घ) दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, पत्र, 35. (ङ) अनुयोगद्वार टीका, पत्र 27, (च) वसुनन्दिश्रावकाचार, श्लोक 301 (छ) द्रव्यसंग्रह टीका, 13 // 34 // 5, (ज) नियमसार, गाथा 134 (झ) दर्शनपाहुड, गाथा 27, (न) चारित्रपाहुड, गाथा 27 (ट) भावपाहुड, गाथा 143, (8) प्रवचनसार, चारित्र अधिकार, गाथा 50 2. (क) व्याख्याप्रशप्तिसूत्र, 7 / 118, (ख) स्थानांगसूत्र, 4 / 3 / 428 (ग) समवायांगसूत्र, 1171, (घ) ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, 5 / 29 (ङ) उवासगदसाओ, 1170, (च) अन्तगडदसाओ-व्याख्याता आचार्य नानेश, सूत्र, 6 / 3 / 82 3. (क) समवायांगसूत्र, 11/71, (ख) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 2 / 4 / 26 (2), (ग) उवासगदसाओ, 1/70 4. (क) आचारांगसूत्र, 1/91 / 47, (ख) सूत्रकृतांगसूत्र, 111119 (ग) स्थानांगसूत्र, 231/107, (घ) उवासगदसाओ, 11 5. (क) आचारांगसूत्र, 1 / 9 / 46, (ख) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 7 / 2 / 7