Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 230
________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 219 का अननुपालन-ये पांच अतिचार बतलाए हैं।' तत्त्वार्थसूत्र में अप्रत्यवेक्षित और अप्रमाजित में उत्सर्ग, अप्रत्यवेक्षित और अप्रमार्जित में आदाननिक्षेप, अपत्यवेक्षित और अप्रमार्जित संस्तारक का उपक्रम, अनादर और स्मृति का अनुपस्थापन ये पांच अतिचार माने हैं। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में ग्रहण, विसर्ग, अस्तरण, अनादर और अस्मरण-ये पाँच अतिचार स्वीकार किये हैं। सागार धर्मामृत में अनवेक्षाप्रमार्जनग्रहण, अनवेक्षाप्रमार्जन स्तरण, अनवेक्षाप्रमार्जन उत्सर्ग, अनादर और अनेकानये पाँच अतिचार बतलाये हैं। भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में पौषधोपवास व्रत के जो अतिचार बतलाए गये हैं उनके नामों में भिन्नता होते हुए भी उनके स्वरूप में विशेष अन्तर. नहीं है। 4. अतिथिसंविभाग व्रतः "अतिथि" शब्द का सामान्य अर्थ जिसके आने की कोई तिथि अथवा समय निश्चित नहीं हो, से किया जाता है तथा “संविभाग" शब्द का अर्थ समुचित विभाग करना है। इस अर्थ में अतिथिसंविभाग का तात्पर्य बिना तिथि सूचित किये आये हुए व्रती, श्रमण, श्रमणी को अपनी सामग्री में से दान देना है। यही श्रावक का अतिथिसंविभाग व्रत है। इस व्रतका पालन करते हुए श्रावक भक्तिभावपूर्वक आहार, औषध, वस्त्र, पात्रशास्त्र आदि श्रमण-श्रमणियों को प्रदान करता है / इस व्रत में श्रावक का अनुकम्पाभाव एवं आदर-सत्कार का भाव परिलक्षित होता है। .. उपासकदशांगसूत्र में इस व्रत को यथा-संविभागवत कहा है।" उपा-- सकदशांगसूत्र टीका में चारित्र सम्पन्न योग्य पात्रों के लिये यथाशक्ति . .1 "तयाणंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समारियन्वा, तं जहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जियसिज्जा संथारे, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमि, अप्पमज्जियदुप्पमज्जियउच्चारपासवण भूमि, पोसहोववासस्ससम्म अणणुपालणया।" -उवासगदसाओ, 1155 2. तत्त्वार्थसत्र, 729 3. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 4 / 20 4. सागार धर्मामृत, 5 / 40 5. उवासगवसाओ, 1156

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