Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 229
________________ 218 : जैनधर्म के सम्प्रदाय को पांचवें स्थान पर गिना गया है। इस प्रकार अतिचारों के क्रम में कुछ.. अन्तर स्पष्ट परिलक्षित होता है। 3. पौषधोपवास व्रतः "पौषध" का अर्थ सामान्यतः अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व से किया जाता है तथा "उपवास" का अर्थ चारों प्रकार के आहार ( अशन, पान,. खादिम और स्वादिम) के त्याग से है। इस प्रकार "पौषधोपवास" का अर्थ पर्व के दिन किसी प्रकार का आहार ग्रहण नहीं करना है। इसमें सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक आहार-त्याग के साथ-साथ पापमय कार्यों (सावद्य प्रवृति) का भी त्याग किया जाता है। यह आत्म-गुणों के पोषण के लिए होता है। ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में अर्हन्नक श्रमणोपासक के पौषधोपवास व्रत. का उल्लेख मिलता है। उपवास का वास्तविक अर्थ तो विषयानुराग घटाना ही है इसलिये श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र', रत्नकरण्डकश्रावकाचार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा", पुरुषार्थसिद्धयुपाय', योगशास्त्र आदि ग्रन्थों में पोषधोपवासधारी को हिंसा आदि पाँच पापों, स्नान, विलेपन तथा सुगन्ध आदि का त्याग करने तथा उस अवधि में किसी प्रकार का आहार ग्रहण, नहीं करने को कहा है। अतिचार : प्रायः सभी ग्रन्थों में पौषधोपवास व्रत के पांच अतिचार माने गये हैं। उपासकदशांगसूत्र में अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक, अप्रमाजित-दुष्प्रमार्जित-शय्या संस्तारक, अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्रवणभूमि अप्रमाजितदुष्प्रमाजित-उच्चारप्रस्रवणभूमि और पौषधोपवास. 1. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 4 / 16 2. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, 8166 3. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अणुव्रत, 11 4. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 4 / 17 5. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 257 6. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 157 7. योगशास्त्र, 3385

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