Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 227
________________ 216 : जैनधर्म के सम्प्रदाय करण्डकश्रावकाचार में वाग्दुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान, मनोदुष्प्रणि- . धान, अनादर और अस्मरण को अतिचार माना हैं।' सागार धर्मामत में स्मृत्यनुपस्थापन, कायदुष्प्रणिधान, वाग्दुष्प्रणिधान, मनोदुष्प्रणिधान और अनादर-ये पांच अतिचार सामायिक व्रत के बतलाए हैं / सामायिक व्रत के ये जो अतिचार विविध ग्रन्थों में कहे गए हैं, उनको देखने से ज्ञात होता है कि अतिचारों के नाम एवं स्वरूप को लेकर कहीं पर भी विशेष अन्तर नहीं है, जो भिन्नता है वह उनके क्रम को लेकर ही है, किसी ग्रंथ में जिस अतिचार को पहले गिना गया है, उसो अतिचार को दूसरे ग्रन्थों में बाद में गिन लिया गया है। 2. देशावकाशिक व्रत : - दिग्व्रत में ग्रहण को हुई मर्यादाओं को और अधिक सोमित करना देशावकाशिक व्रत है। उपासकदशांगसूत्र, रत्नकरण्डकश्रावकाचार तथा कार्तिकेयानुप्रेक्षा' आदि अनेक ग्रंथों में व्रत को शिक्षाव्रत में गिना गया है, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, उपासकाध्ययन, अमितगतिश्रावकाचार', वसुनन्दिश्रावकाचार° आदि ग्रन्थों में इस व्रत को गुणवतों में स्थान मिला है / देशावकाशिक व्रत को चाहे गुणवतों में स्थान मिला हो, चाहे शिक्षाव्रतों में, इसके स्वरूप के सम्बन्ध में आचार्यों में मत-वैभिन्न्य नहीं है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा गया है कि श्रावक द्वारा लोभ और काम को घटाने के लिए तथा हिंसा आदि समस्त पापों को छोड़ने के लिए वर्ष आदि की मर्यादा करके दिग्व्रत में ग्रहण किए हुए दिशाओं के परिमाण 1. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 4315 2. सागार धर्मामृत, 5 / 33 3. उवासगदसाओ 1211 4. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 42 5. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 367-368 6. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 16 7. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 138-140 8. उपासकाध्ययन, श्लोक 449 9. अमितगतिश्रावकाचार, 6178 10. वसुनन्दिश्रावकाचार, 215

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