Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 225
________________ 214 : जैनधर्म के सम्प्रदाय हेतु काल विशेष के लिये ग्रहण किया जाता है / सामायिक, देशावकाशिक, प्रोषधोपवास एवं अतिथिसंविभाग ये चार शिक्षाव्रत माने गए हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है१. सामायिक व्रतः वस्तुतः सामायिक से सावध योगों की निवृत्ति होती है। वस्तुतः दो करण, तीन योग से समस्त सावद्ययोगों का काल विशेष तक त्याग. करने का नियम लेना सामायिक है। सागार धर्मामृत में कहा गया है कि एकान्त में श्रमण को तरह सभी प्रकार की हिंसा आदि का त्याग करके अपनो आत्मा का हो ध्यान करना धावक का सामायिक व्रत है। सामायिक व्रत धारण करने वाला श्रावक त्रस और स्थावर जीवों के प्रति समभाव रखता है-इस कारण उसके सावध अर्थात् पापमय प्रवृत्तियों का त्याग होता है। ___सामायिक की अवधि एक मुहूर्त (48 मिनट ) मानो गई है। श्रावक के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है कि उसे प्रतिदिन कितनो सामायिक करनी चाहिए? श्रावक अपनो सामर्थ्य के अनुसार एक-दो या इससे भो अधिक सामायिक करते हैं। सामायिक करने के लिए कौनसा समय उपयुक्त है इस विषय में कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा है-सामायिक का काल. प्रातः, मध्याह्न एवं सायंकाल है। दिगम्बर परम्परा में आज भो त्रिसंध्याओं में सामायिक करने का विधान है, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा में ऐसी कोई नियत परम्परा नहीं है। सामायिक व्रत का अभ्यास करने वाला श्रावक समता भाव को धारण कर शान्त एवं निर्मल आत्मा में रमण करता है। लाटोसंहिता में शुद्ध आत्मा के स्वरूप का चिन्तन करने को सामायिक कहा है। सागार. 1. उत्तराध्ययनसूत्र, 28 / 32 2. (क) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अणुव्रत 9 (ख) रत्नकरण्डकश्रावकाचार , श्लोक 47 (ग) श्रावकप्रज्ञप्ति, 293 3. सागार धर्मामृत, 5 / 28 4. कातिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 354 5. लाटीसंहिता, 5 / 152

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