________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 197 हुआ है। आगमों में श्राविका' और श्रमणोपासिका शब्दों का प्रयोग त हुआ है, किन्तु उनके आचार-नियमों को स्वतन्त्र चर्चा नहीं हई है। श्रावकाचार का विवेचन करने वाले सभी ग्रन्थों में श्राविका के आचार को चर्चा श्रावकाचार के अन्तर्गत हो की गई है, क्योंकि श्रावक और श्राविका का आचार समान माना गया है। 'श्रावक का अर्थ : "श्रुणोति गुर्वादिभ्यो धर्म इति श्रावकः" अर्थात् जो गुरुओं से धर्म सुनता है, वह श्रावक है। श्रावक के घर जन्म लेने मात्र से कोई श्रावक नहीं बन जाता है, अपितु श्रावक व्रत ग्रहण करने वाला ही श्रावक कहलाता है / दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ सागार धर्मामृत में दान-पूजा करने वाले गृहस्थ को श्रावक कहा गया है। श्रावकप्रज्ञप्ति में कहा है कि जो सम्यक्त्वी प्रतिदिन साधुओं से सम्यक् दर्शन आदि समाचारी को सुनता है, वह निश्चित रूप से श्रावक है / श्रावक की पहचान : यह जिज्ञासा की जा सकती है कि श्रमण एवं श्रावक को पहचान कैसे की जाए ? समाधान में हम कहना चाहेंगे कि एक तो श्रमण पंच महाव्रतों की आराधना समग्रतया करता है जबकि गृहस्थ उनका पालन अंशतः करता है, इसलिए. श्रमण के व्यवहार को देखकर ही यह ज्ञात हो जाता है कि यह श्रमण है और दूसरे श्रमण लिङ्ग (वेश ) गृहस्थलिङ्ग से भिन्न होता है / श्रमण के वेश आदि से किसी सीमा तक यह भी ज्ञात हो जाता है कि यह श्रमण जैनधर्म के किस सम्प्रदाय का है ? किन्तु इसो रूप में श्रावक की पहचान करना सहज नहीं है। यद्यपि कुछ समय पूर्व तक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक एवं दिगम्बर बीसपंथी सम्प्रदाय के श्रावक सामान्यतया ललाट पर तिलक लगाते थे, लेकिन अब उनमें भी यह (ग) पचांशकप्रकरण टीका, पत्र 153, (घ) समयसार, गाथा 411 / (ङ) प्रवचनसार, ज्ञेय अधिकार, गाथा 102 तथा चारित्र अधिकार, ___ गाथा 75 (च) चारित्रपाहुड, गाथा 22 1. व्याख्याप्रज्ञप्तिसत्र, 5 / 4 / 26 (2) 2. स्थानांगसूत्र, 4 // 3 // 429 3. सागारधर्मामृत, 1115 4. श्रावकप्रज्ञप्ति, गाथा 2