________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 183 दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ भगवती आराधना में भी यह उल्लेख है कि वर्षाकाल के चार माह बाद भी श्रमण अधिकतम एक माह और उसी स्थान पर रह सकता है।' श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम दशवैकालिकसूत्र में विहारचर्या की चर्चा करते हुए कहा गया है कि वर्षाकाल में चार माह और अन्य ऋतुओं में अधिकतम एक माह एक स्थान पर रहना उत्कृष्ट प्रमाण है तथा जहाँ श्रमण ने वर्षावास या मासकल्प किया हो वहाँ दूसरा वर्षावास या दूसरा मासकल्प करना उसके लिए उचित नहीं है। वैसे तो श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में वर्षाकाल में श्रमण का विहार करना निषिद्ध है, किन्तु दोनों परम्पराओं ने कुछ विशेष परिस्थितियों में वर्षाकाल में भी श्रमण को विहार कर सकने की स्वीकृति दी है। श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम स्थानांगसूत्र में पाँच कारणों से वर्षाकाल में भी विहार करना आचार सम्मत माना है 1. विशेष ज्ञान प्राप्ति के लिए। 2. दर्शन प्रभावक शास्त्र का अर्थ जानने के लिए। 3. चारित्र की रक्षा के लिए। 4. आचार्य या उपाध्याय की मृत्यु हो जाने पर / 5. आचार्य या उपाध्याय की वैयावृत्य (सेवा) करने के लिए। दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रंथ भगवती आराधना की विजयोदया टीका में भी चार कारणों से वर्षाकाल में भी श्रमण द्वारा विहार करना आचार सम्मत माना गया है.. 1. दुर्भिक्ष ( अकाल ) पड़ जाने पर। 2. महामारी फैल जाने पर। .... 3. गांव अथवा प्रदेश में किसी कारण विशेष से भारी उथल-पुथल .. हो जाने पर। - 4. गच्छ के विनाश का निमित्त उपस्थित होने पर। - 1. भगवती आराधना, गाथा 421 2. दशवकालिकसूत्र, द्वितीय चूलिका, सूत्र 570 3. स्थानांगसूत्र, 5 / 2 / 100 4. भगवती आराधना, विजयोदया टीका, सूत्र 421 . .