________________ विभिन्न सम्प्रदायों को श्रमणाचार सम्बन्धो मान्यताएं : 159 देने के भी उल्लेख मिलते हैं लेकिन परम्परागत मान्यता तो यही है कि साधक को श्रमण बनने के लिए पहले क्षुल्लक और फिर ऐलक की अवस्था को पार करना होता है। इस परम्परानुसार श्रमण अट्ठाईस मूलगुणों का धारक होता है, जिनकी चर्चा हम यथास्थान आगे के पृष्ठों में करेंगे। दिगम्बर परम्परा में क्षुल्लक, ऐलक और श्रमण दोक्षा में से कोई भो दीक्षा ऐसी नहीं है, जो आचार्य की आज्ञा के बिना ग्रहण की जाती हो। आचार्य दीक्षार्थी को प्रत्येक दीक्षा मुनि संघ एवं श्रावक-श्राविकाओं के सम्मुख एवं उनकी सहमति से ही देता है। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर. परम्परा में दोक्षा की विधि में भेद अवश्य है, किन्तु दोनों परम्पराओं ने दीक्षा का व्यापक अर्थ पांच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति तथा क्षमा, वीरागता आदि का पालन एवं पंचेन्द्रिय'निग्रह तथा चार कषायों का त्याग, पादविहार, केशलोंच एवं भिक्षावृत्ति से जीवनयापन करना ही किया है। साथ ही दोनों परम्पराओं ने स्वाध्याय, ध्यान और तप को धमण जीवन के अंग माने हैं। श्वेताम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुण : ___ श्रमणधर्म की आधारशिला मूलगुणों पर ही अवस्थित है / मूलगुणों का पालन ही श्रमण जीवन का उत्स है। जिस प्रकार मूल ( जड़ ) के बिना वृक्ष स्थित नहीं रह सकता है उसी प्रकार मूलगुणों के अभाव में श्रमण जीवन भी स्थित नहीं रह सकता है। मूलगुण श्रमण साधना के सोपान हैं / चारित्र की शुद्धि मूलगुणों के पालन से ही प्रबल होतो है। - श्रमण दीक्षा को धारण करके मूलगुणों का नियमपूर्वक पालन करता है। मूलगुणों की संख्या एवं नाम को लेकर श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-दोनों परम्पराओं में मतभेद हैं। श्वेताम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुणों को निर्धारित संख्या सत्ताईस है / समवायांगसूत्र में उल्लिखित सत्ताईस गुण इस प्रकार हैंपांच महावत: (1) प्राणातिपात-विरमण, (2) मृषावाद-विरमण, (3) अदत्तादानविरमण, (4) मैथुन-विरमण, (5) परिग्रह-विरमण, 1. समवायांगसूत्र, 27/178