________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएँ : 173 कि काय समाधारणता से जीव चारित्र पर्यायों को विशुद्ध करता है। चारित्र पर्यायों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है। यथाख्यातचारित्र को विशुद्ध करके जीव केवली में विद्यमान वेदना आदि चार कर्मों का क्षय करता है, तत्पश्चात् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और समस्त दुःखों का अन्त करता है।' ज्ञान सम्पन्नता: ज्ञान की सम्पन्नता से सभी भावों का बोध होता है। ज्ञान सम्पन्न साधक चार गति रूप संसार महारण्य में भी विनष्ट नहीं होता। उत्तराध्ययनसूत्र, चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक, भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, मूलाचार और सूत्रपाहुड' आदि ग्रन्थों में ज्ञान सम्पन्नता का लाभ बताते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार धागे सहित सुई कहीं गिर जाने पर भी खोती नहीं है, उसी प्रकार ज्ञान सम्पन्न जीव भी संसार में भटकता नहीं है। दर्शन सम्पन्नता : दर्शन सम्पन्नता से संसार परिभ्रमण का कारण मिट जाता है। मिथ्यात्व नष्ट हो जाता है। दर्शन सम्पन्नता का प्रकाश कभी बुझता नहीं है वरन् साधक ज्ञान-दर्शन से आत्मा को संयोजित करता हुआ समभाव में विचरण करता है। चारित्र सम्पन्नता: चारित्र सम्पन्नता से साधक शैलेशीभाव ( दृढभाव) को प्राप्त करता है। शैलेशीभाव से युक्त साधक चार अघाती कर्मों का क्षय करता है। तत्पश्चात् वह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता 1. उत्तराध्ययनसूत्र, 29 / 59 2. वही, 29 / 60 3. चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक, गाथा 83 4. भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक, गाथा 86 5. मूलाचार, गाथा 973 6. सूत्रपाहुड, गाथा 4 . 7. सिसोदिया, सुरेश-चंदावेज्मयं पइण्णय, भूमिका, पृ० 24-25. 8. उत्तराध्ययनसूत्र, 29 / 61