________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 113 यापनीय सम्प्रदाय के उपसम्प्रदाय : वर्तमान समय में जैन परम्परा में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-ये दो सम्प्रदाय ही प्रमुख सम्प्रदाय माने जाते हैं, किन्तु ५वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दी के लगभग प्रभावशाली रहे यापनीय सम्प्रदाय का वर्तमान में कोई अस्तित्व नहीं है तथा ऐसी कोई विशेष साहित्यिक सामग्री भी उपलब्ध नहीं है जिससे इस सम्प्रदाय एवं इसके उपसम्प्रदायों को जानकारी ज्ञात हो सके। डॉ० सागरमल जैन ने यापनीय सम्प्रदाय, साहित्य, मान्याताएँ एवं उसके उपसम्प्रदायों का विस्तारपूर्वक उल्लेख अपनी पुस्तक "जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय" में किया है। हम मुख्य रूप से इसी पुस्तक को आधार बनाकर यापनोय सम्प्रदाय के उपसम्प्रदायों को संक्षिप्त जानकारी यहाँ दे रहे हैं। 1. कनकोपलसम्भूतवृक्षमूलगण : . यद्यपि ऐसा एक भी अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है जिसमें इस गण का उल्लेख यापनीय संघ के साथ हुआ हो। इस गण की उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इनकी मान्यताएँ क्या थीं ? इत्यादि जानकारियाँ अज्ञात हैं / इस गण का सर्वप्रथम उल्लेख 488 ई. के एक अभिलेख में मिलता है। इस अभिलेख में कनकोपल आम्नाय के जिननन्दि को एक जैन मन्दिर हेतु गांव तथा कुछ जमीन देने का उल्लेख है। इस अभिलेख में इस गण के कुछ आचार्यों के नाम भी मिलते हैं, यथा-जिननन्दि, सिद्धनन्दि, चितकाचार्य, नागदेव आदि / हम इस सम्प्रदाय को यापनीय सम्प्रदाय से सम्बन्धित कडब के उस अभिलेख के आधार पर मान रहे हैं जिसमें आचार्यों को जो सूची दो गई है उसमें कित्याचार्य अन्वय (चितकाचार्यान्वय) का भी उल्लेख है। इन्हीं कित्याचार्य का नामोल्लेख इस गण के साथ मिलने से यह प्रतिफलित होता है कि यह गण यापनीय सम्प्रदाय से संबंधित रहा है। - लगभग ५वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया यह गण कितने समय तक अस्तित्व में बना रहा तथा कालान्तर में कब लुप्त हो गया ? पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में इस सन्दर्भ में कुछ नहीं कहा जा सकता है। 2. श्रीमूलमूलगण: . ऐसा कोई अभिलेख अथवा साहित्य हमें उपलब्ध नहीं हुआ है जिसमें . 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 106 2. वही, क्रमांक 124