________________ 116 : जैनधर्म के सम्प्रदाय 5. कोटिमडवगण : 945 ई० के एक अभिलेख में यापनीयसंघ, कोटिमडुवगण, अर्हन्नन्दी गच्छ के मन्दिर एवं देव आदि का उल्लेख मिलता है। इस अभिलेख में यापनीय संघ के साथ इस गण का नामोल्लेख होने से ज्ञात होता कि यह गण यापनीय सम्प्रदाय से संबंधित रहा है। प्रो० पी० बी० देसाई ने 1124 ई. के सेडम के एक अभिलेख के आधार पर मडुवगण के प्रभाचन्द्र विध का उल्लेख किया है। उपलब्ध अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यह गण १०वीं से १२वीं शताब्दी तक लगभग 200 वर्षों तक अस्तित्व में रहा है। इस गण से संबंधित विस्तृत जानकारी अनुपलब्ध है। . 6. कण्डूर/काणूरगण : ____कण्डूरगण अथवा काणूरगण यापनीय सम्प्रदाय का एक महत्वपूर्ण गण रहा है। इस गण का सर्वप्रथम उल्लेख 980 ई. के सौंदत्ति के अभिलेख में मिलता है। इस अभिलेख में इस गण के साथ यापनीय संघ का स्पष्ट उल्लेख मिलता है जिससे ज्ञात होता है कि यह गण यापनीय सम्प्रदाय से संबंधित रहा है। इस अभिलेख में इस गण के आचार्यों के नाम इस प्रकार उल्लिखित हैं-बाहुबलिदेव, रविचन्द्रस्वामो, अर्हन्नन्दो, शुभचन्द्र और प्रभाचन्द्रदेव / ११वीं से १३वीं शताब्दी के तीन अभिलेख और उपलब्ध होते हैं जिनमें इस गण का नामोल्लेख यापनीय संघ के साथ हुआ है। कुछ अभिलेखों में इस गण का उल्लेख मूलसंघ के साथ भी हुआ है इससे एक संभावना यह लगती है कि यह गण दिगम्बर परम्परा से संबंधित रहा होगा तथा दूसरी संभावना यह लगती है कि प्रारम्भ में यह गण यापनीय परम्परा से संबंधित रहा होगा किन्तु कालान्तर में जब यापनीय संघ धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और उसके गण दिगम्बर सम्प्रदाय में विलीन होने लगे तो यह गण दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा आत्मसात कर लिया गया 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 143 2. Jainism in South India, P. 403 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 160 4. (क) वही, भाग 2, क्रमांक 205, 207 (ख) वही, भाग 4, क्रमांक 368