________________ 120 : जैनधर्म के सम्प्रदाय लेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों की अनुपलब्धता के कारण यह मानना उचित प्रतीत होता है कि १५वीं शताब्दी के पश्चात् इस सम्प्रदाय के अनुयायो अन्य सम्प्रदायों में समाहित हो गये होंगे। प्रस्तुत अध्याय में हमने जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों की ऐतिहासिक दृष्टि से चर्चा की है। किन्तु इन सम्प्रदायों और उपसंप्रदायों के अस्तित्व में आने के मूलभूत कारण क्या थे और दार्शनिक सिद्धान्तों अथवा आचार संबंधो प्रश्नों को लेकर इन सम्प्रदायों के मन्तव्य क्या थे? इनकी चर्चा हमने यहाँ नहीं की है। अगले अध्यायों में हम इन सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों को दार्शनिक एवं आचार संबंधी विशिष्ट मान्यताओं का उल्लेख करेंगे।