________________ विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन संबंधी मान्यताएँ : 133 त्रस और स्थावर के रूप में स्पष्टतः वर्गीकरण नहीं हुआ है।' श्वेताम्बर परम्परा में आचारांगसूत्र के पश्चात् उत्तराध्ययनसूत्र के २६वें और ३६वें अध्यायों में षट्जीवनिकायों का उल्लेख उपलब्ध होता है / २६वें अध्याय में यद्यपि त्रस और स्थावर रूप में स्पष्ट वर्गीकरण तो नहीं किया गया है, किन्तु जिस क्रम से उसमें षट्जीवनिकायों को चर्चा हुई है उससे ऐसा फलित होता है कि पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु और वनस्पति-ये पांच स्थावर हैं तथा छठा त्रसकाय ही त्रस है, किन्तु उत्तराध्ययनसूत्र के ३६वें अध्याय की स्थिति इससे भिन्न है उसमें सर्वप्रथम जीवनिकाय को उस और स्थावर ऐसे दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। तत्पश्चात् स्थावर के अंतर्गत पृथ्वी, अप और वनस्पति को तथा त्रस के अन्तर्गत अग्नि, वायु और त्रसजोव को रखा गया है। __ परम्परा की दृष्टि से देखें तो ज्ञात होता है कि प्राचोन श्वेताम्बर आगमिकधारा जहाँ तीन स्थावर और तीन त्रस की अवधारणा प्रस्तुत करती है, वहीं दिगम्बर परम्परा में मात्र कुन्दकुन्द को छोड़कर सभी आचार्य पाँच स्थावर और एक त्रस की अवधारणा को मान्य करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य उमास्वाति के तत्त्वार्थभाष्य के पाठ में जहाँ तीन स्थावर और तोन बस का वर्गीकरण मिलता है वहों दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य सर्वार्थसिद्धि के पाठ में पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय के साथ अग्निकाय और वायुकाय को भी स्थावर माना गया है। इस प्रकार इस प्रश्न को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा में स्पष्ट मतभेद देखा जा सकता है। दिगम्बर परंपरा के प्रमुख आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने ग्रंथ पंचास्तिकायसंग्रह में उत्तराध्ययनसूत्र और तत्त्वार्थभाष्य मान्य पाठ का हो अनुसरण किया है। उन्होंने भी पृथ्वोकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय को स्थावर तथा वायुकाय और अग्निकाय को त्रस कहा है। कुन्दकुन्द के इस अपवाद को छोड़कर सामान्यतया दिग१. आचारांगसूत्र , प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथम अध्ययन 2. उत्तराध्ययनसूत्र, 36 / 68 3. वही, 36 / 69, 107 4. (क) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गाथा 175-177 की टीका ___ . (ख) मूलाचार, गाथा 205 5. तत्त्वार्थभाष्य, 2013-14 6. सर्वार्थसिदि, गाथा 2013-14 7. पंचास्तिकायसंग्रह, गाथा 111