________________ विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन संबंधी मान्यताएं : 141 रत्नत्रय की इस साधना को वाचक उमास्वाति इस रूप में रखते हैंसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्ग : अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र मोक्षमार्ग है।' जैन दर्शन में मोक्ष प्राप्ति के उक्त तीनों ही साधन बतलाये गये हैं। जैन दर्शनानुसार इनमें से किसो एक के भी अभाव में मुक्त होना संभव नहीं है, वरन् इन तोनों को सम्यक् साधना करके ही कोई मुक्त हो सकता है। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या सभो जीव मुक्त हो सकते हैं ? यदि नहीं, तो मुक्ति का पात्र कौन है ? सामान्यतः इस विषय में जैन दर्शन का मन्तव्य यही है कि सभी भव्य-जोक मुक्ति के पात्र हैं। किन्तु इस संबंध में साम्प्रदायिक विवाद का विषय यह है कि मोक्ष की प्राप्ति मात्र पुरुष को होती है अथवा स्त्रो, नपुसक, गृहस्थ एवं अन्यतिथिक को भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ? दिगम्बर परंपरा पुरुषं को ही मुक्ति का अधिकारी मानतो है जबकि श्वेताम्बर परम्परा ने मुक्ति के संदर्भ में पुरुष के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए स्त्री को भी मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी माना है। दिगम्बर मतानुसार स्त्री को स्त्रो पर्याय में मुक्ति नहीं मिल सकती क्योंकि वे पौरुषहीन हैं, अबला हैं। इस विषय में श्वेताम्बर मत यह है कि पुरुष और स्त्री दोनों की ही शक्ति एक जैसी है, दोनों के ज्ञान, दर्शन और चारित्र में एक जैसी प्रवृत्ति है फिर स्त्री मुक्ति को अधिकारी क्यों नहीं हो सकती ? मुक्ति तो समस्त कर्मों का क्षय होने पर प्राप्त होती है / अतः कर्मक्षय करने वाला प्रत्येक जीव अवश्य हो मुक्त होता है। श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा का मुक्ति विषयक यह वैचारिक मतभेद इतना गम्भीर है कि इस विवाद के चलते उन्नीसवें तीर्थंकर मल्ली स्त्री थे या पुरुष, यह प्रश्न आज भी दोनों परंपराओं में विवादास्पद है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मल्ली स्त्री थे। जबकि दिगम्बर परम्परा के अनुसार मल्ली पुरुष थे। स्त्री मुक्ति के संदर्भ में श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय की यह वैचारिक भिन्नता जैनधर्म के इन दो प्रमुख सम्प्रदायों के मध्य विवाद का प्रमुख मुद्दा है। यहाँ अब हम यह स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि स्त्री मुक्ति का प्रश्न इन दोनों संप्रदायों में कब एवं किस प्रकार विवाद का कारण बना है ? 1. तत्त्वार्थसूत्र, 102 2. शाताधर्मकथान, मल्ब म . .................. /