________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 115 उपलब्ध हआ है। इसमें इस गण के नेमिचन्द्र, धर्मकोति और नागचन्द्र आदि आचार्यों के नामोल्लेख मिलते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि ९वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक लगभग 600 वर्षों को दोर्घ अवधि तक यापतीय सम्प्रदाय का यह गण अस्तित्व में रहा, किन्तु इतनी लम्बी अवधि तक अस्तित्व में रहकर भी इस गण के अनुयायियों का ऐसा कोई अभिलेखोय अथवा साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जिससे इस गण की उत्पत्ति एवं मान्यता सम्बन्धी विशेष जानकारो ज्ञात हो सके। 4. कोरयगण : इस गण का प्राचीनतम अभिलेख 875 ई० का उपलब्ध होता है। ११वीं शताब्दी के कल्भावो के एक अभिलेख में कोरयगण का उल्लेख मैलापान्वय के साथ मिलता है / मैलापान्वय यापनीय सम्प्रदाय का प्रमुख अन्वये माना जाता है। बइलहोंगल के एक अभिलेख में यापनीय संघ का मेलापान्वय के कोरयगण तथा उसके मुल्ल भट्टारक और जिनेश्वरसूरि का वर्णन है।४ १३वीं शताब्दी के निम्न तीन अन्य अभिलेखों में भी इस गण का नामोल्लेख यापनीय संघ के मैलापान्वय के साथ हुआ है" [क] हन्नकरि का अभिलेख (1209 ई.) [ख] बदली (बेलगांव) का अभिलेख (1219 ई.) [ग] हन्नेकेरि का अभिलेख (1257 ई०) इन अभिलेखों में इस गण के निम्न आचार्यों के नाम भी उल्लेखित हैं-भट्टारक माधव; विजदेव, भट्टारककोति, कनकप्रभ और श्रीधरत्रैविधदेव आदि। . इस प्रकार अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि यह गण लगभग 400 वर्षों तक अस्तित्व में बना रहा। 1. जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय, पृ० 37 2.. वही, पृ० 40 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 182 4. वही, भाग 4, क्रमांक 209 5. जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय, पृ०४०