________________ जैन सम्प्रदायों के ऐतिहासिक स्रोत : 45 पभोसा के एक अभिलेख में काश्यपीय अहंतों के लिए गुफा बनाने का उल्लेख हुआ है।' यह अभिलेख ई० पू० पहली या दूसरी शताब्दी का है। यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि काश्यपीय अर्हन्त कौन थे तथा उनका जैन धर्म से क्या संबन्ध रहा होगा ? समाधान के रूप में हम कहना चाहेंगे कि महावीर का गौत्र काश्यप माना जाता है इसलिए यहाँ काश्यपीय अर्हन्त का तात्पर्य महावीर की परंपरा से समझा जाना चाहिए। इसके अलावा भद्रबाह के शिष्य गोदास को भी काश्यपगौत्रीय माना गया है, इसलिये भी इस कथन को बल मिलता है कि काश्यपीय अर्हन्त जैन धर्म से ही सम्बन्धित थे। साथ ही वहाँ से उपलब्ध जिनप्रतिमाएँ भी इसी तथ्य की सूचक हैं कि काश्यपीय अर्हन्त जैन धर्म सम्बन्धित थे। कल्पसूत्र स्थविरावली में भी काश्यपीय शाखा का उल्लेख है। दक्षिण भारत में संघ का नामोल्लेख करने वाले प्राचीनतम अभिलेख नोणमंगल और देवगिरि के हैं / नोणमंगल के अभिलेख में निर्ग्रन्थ संघ, श्वेतपट्टमहाश्रमण संघ, कूर्चक संघ एवं यापनोय संघ के नाम उल्लिखित हैं। - उदयगिरि ( विदिशा ) के अभिलेख ( वि० सं० 426 ) में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित करने वालों ने अपने आपको आर्यकूल एवं भद्रान्वय के आचार्य गोशर्मा का शिष्य बतलाया है। पहाडपुर (बंगाल ) के एक अभिलेख में काशी की पंचस्तूपान्वय का उल्लेख हुआ है। पंचस्तपान्वय नाम बाद में भी प्रचलित रहा है। धवला के टीकाकर्ता वीरसेन ने अपने गुरु को पंचस्तूपान्वय का कहा है। अभिलेखों में उल्लिखित गण, गच्छ, शाखा, कुल और अन्वय आदि से यह स्पष्ट होता है कि जैन धर्म के सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास को समझने हेतु जैन अभिलेख महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्रो प्रदान करते हैं। जन चित्रकला : . जैन परम्परा में ताड़पत्रों एवं कागजों पर चित्र तो विपुल मात्रा में मिलते हैं, किन्तु वे अधिक प्राचीन नहीं हैं / प्राचीनता की दृष्टि से भित्तिचित्र ही मुख्य हैं। सबसे प्राचीन भित्तिचित्र तंजोर के समीप सित्तनवासल 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 7 2. वही, भाग 2, क्रमांक 90, 94 1. वही, भाग 2, क्रमांक 98 4. वही, भाग 2, क्रमांक 57 5. जैन, डॉ० सागरमल-जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय, पृ० 20