________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 57 एवं आचार सम्बन्धी इनकी कुछ मान्यताएं दिगम्बर सम्प्रदाय से भिन्न हैं, जिनका उल्लेख हम यथास्थान आगे करेंगे / दिगम्बर मतानुसार श्वेताम्बर सम्प्रदाय को उत्पत्ति : श्वेताम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति के विषय में दिगम्बर मान्यता यह है कि मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के समय श्रुतकेवली भद्रबाहु ने भयंकर अकाल की भविष्यवाणी की थी। जिसे सुनकर मुनि वर्ग का एक समूह उनके नेतृत्व में दक्षिण भारत चला गया और अचेल धर्म का पालन करता रहा / इधर उत्तर भारत में भद्रबाहु की अनुपस्थिति में स्थुलिभद्र ने संघ का नेतृत्व ग्रहण किया और दुष्काल को स्थिति में श्रमणोचित आचारनियमों में कुछ ढील देते हुए भिक्षुओं को वस्त्र, पात्र, दण्ड आदि रखने की अनुमति दे दी। बाद में जब भद्रबाहु का संघ दक्षिण धारत से लौटकर आया तो इन सवस्त्र भिक्षुओं को पुनः अचेल धर्म का पालन कराने में उन्हें सफलता नहीं मिली। परिणामस्वरूप साधुओं में संघभेद हो गया / इस प्रकार वस्त्र, पात्र आदि रखने वाले साधु श्वेताम्बर साधु के रूप में पहचाने जाने लगे और जिन्होंने वस्त्र, पात्र आदि का त्याग कर दिया था, वे दिगम्बर साधु कहलाने लगे। दिगम्बर परम्परानुसार यह 'घटना वि० सं० 136 ( वीर निर्वाण संवत 606 ) की है। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ भावसंग्रह में भी श्वेताम्बर परम्परा को उत्पत्ति का कथन इससे मिलता-जुलता ही है। दिगम्बर सम्प्रदाय : दिगम्बर परम्परा ने अपने अपरिग्रह सिद्धान्त को थोड़ा कठोर बनाते हुए श्रमणों के सीमित वस्त्र-पात्रादि को भी परिग्रह की सीमा में गिन * लिया / यही कारण है कि इस सम्प्रदाय के साधु निर्वस्त्र ही रहते हैं एवं हाथ में ही भोजन ग्रहण करते हैं अर्थात् पाणि-पात्री होते हैं। ... श्वेताम्बर परम्परा की अपेक्षा दिगम्बर परम्परा का एक मुख्य भेद यह है कि इस परम्परानुसार स्त्री मुक्त नहीं हो सकतो तथा केवली कवलाहार नहीं करते हैं। श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं को -दर्शन तथा आचार सम्बन्धी अधिकांश मान्यताएं समान हैं, किन्तु कुछ भिन्न भी हैं। इन सबका उल्लेख हम यहाँ नहीं करक इन दोनों परम्प३. बृहद्कथाकोश ( हरिषेण ), पृ० 4-6 2. भावसंग्रह-देवसूरि, गाथा 52-62