________________ . 70 : मनवम के सम्प्रदाय का उल्लेख हुआ है / ' 1073 ई० को एक पाषाण-प्रतिमा राजस्थान के लौटाणा तीर्थ से प्राप्त हुई है, जो कायोत्सर्ग मुद्रा में है। इस प्रतिमा पर निवृत्तिकूल का तथा किन्हीं शेखरसूरि का नाम उत्कीर्ण है। __अन्य गच्छों की तरह इस गच्छ के विषय में भी ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है जिससे यह ज्ञात किया जा सके कि इस गच्छ को उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इनको मान्यताएँ क्या थीं? .. 9. राजगच्छ : ___ चन्द्रकुल से समय-समय पर अनेक गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ, राजगच्छ भी उनमें से एक है। ११वीं शती के आसपास इस गच्छ का प्रादुर्भाव माना जाता है / चन्द्रकुल के आचार्य प्रद्युम्नसूरि के प्रशिष्य धनेश्वरसूरि (प्रथम) दीक्षा लेने के पूर्व राजा थे, अतः उनकी शिष्य परंपरा राजगच्छ के नाम से विख्यात हई। ११वों से १५वीं शती के कुछ प्रतिमा लेखों में इस गच्छ का उल्लेख हुआ है। इस गच्छ में धनेश्वरसूरि (द्वितीय), पार्श्वदेवगणि, सिद्धसेनसूरि, देवभद्रसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, प्रभाचन्द्रसूरि आदि कई प्रभावक और विद्वान् आचार्य हुए हैं। इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों का प्रायः अभाव है, अतः इसके बारे में विशेष जानकारी ज्ञात नहीं होती है। 10. वायटगच्छ : इस गच्छ के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, किन्तु 1078 ई० और 1104 ई० के दो प्रतिमालेखों में इस गच्छ का नामोल्लेख अवश्य मिलता है। जिससे यह प्रतिफलित होता है कि ११वीं शताब्दी के अन्त में एवं १२वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह गच्छ अस्तित्व में रहा होगा। 11. वात्पीय गच्छ : 1105 ई० और 1281 ई० के दो अभिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख मिलता है। किन्तु इस गच्छ की उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके 1. (क) श्री जन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 318 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 712, 937 2. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 379, 441, 458 3. बही, क्रमांक 7, 12 4. Jain, Kailash Chandra-Jainism in Rajasthan, P. 68