________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 81 32. हस्तीकुण्डी गच्छ : श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मूर्तिपूजक परम्परा में ऐसे गच्छ बहुतायत में मिलते हैं जिनके नामोल्लेख मात्र यत्र-तत्र मिल जाते हैं, किन्तु उनसे संबंधित और कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा ही एक गच्छ हस्तीकुण्डी गच्छ है। इस गच्छ का नामोल्लेख उदयपुर से प्राप्त 1281 ई० के एक लेख में मिलता है। इस गच्छ से संबंधित अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। 33. काछोलो गच्छ: __ काछोली गच्छ पूर्णिमा गच्छ की एक शाखा है। राजस्थान के सिरोही राज्य में काछोली गांव है, ऐसा माना जाता है कि यहीं से इस गच्छ की उत्पत्ति हुई है। इसी गांव में 1286 ई. के उपलब्ध एक प्रतिमा लेख में इस गच्छ के किन्हीं मेरूमुनि का नाम उल्लेखित है / 2. 34. उपकेश गच्छ : ___ इस गच्छ की उत्पत्ति राजस्थान में स्थित ओसिया (उपकेश नगर) से हई थो, ऐसा माना जाता है। इस गच्छ का नामोल्लेख 1287 ई० से 1535 ई० तक के लगभग 60 प्रतिमा लेखों में मिलता है। ___ उपकेशगच्छ से संबंधित प्रतिमालेखों में कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि और सिद्धसूरि-इन तीन पट्टधर आचार्यों के नामों की प्रायः पुनरावृत्ति होती रही है। इस गच्छ के कई प्रभावक आचार्य हुए हैं, जिन्होंने साहित्योपासना के साथ-साथ नूतन जिनालयों के निर्माण, प्राचीन जिनालयों के जीर्णोद्धार तथा जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा द्वारा पश्चिम भारत में श्वेताम्बर श्रमण परम्परा को जीवन्त बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अन्य गच्छों की भांति उपकेशगच्छ से भी कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ। इस गच्छ से द्विवंदनीक शाखा (1210 ई०), खरतरतपाशाखा (1252 ई०) तथा खादिरीशाखा (1442 ई०) अस्तित्व में आयीं। इन शाखाओं के अतिरिक्त इसी गच्छ की दो अन्य शाखाओं-ककुदाचार्यसंतानीय तथा सिद्धाचार्यसंतानीय शाखा की भी जानकारी मिलती है, किन्तु इनके उत्पत्ति काल की कोई जानकारी नहीं मिलती है। 1. प्राचीन लेख संग्रह, क्रमांक 43 1. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 332 3. प्रतिष्ठालेख संग्रह-परिशिष्ट, 2.10 222