________________ 80: जैनधर्म के सम्प्रदाय हैं इसका उल्लेख हम विभिन्न सम्प्रदायों को दर्शन तथा आचार सम्बन्धी. मान्यताओं का अध्ययन करते समय आगे के पृष्ठों में करेंगे, किन्तु इस गच्छ की एक विशेषता यह है कि इनके मत में "इरियावही" ( मार्मालोचना ) सामायिक पाठ उच्चारण करने से पहले की जाती हैं जबकि खरतरगच्छ के अनुसार "इरियावही" सामायिक पाठ ग्रहण करने के पश्चात् की जाती है।' तपागच्छ में वर्तमान समय में लगभग 100. . आचार्य एवं 5000 साधु-साध्वियां हैं। 29. पिप्पल गच्छ: 1235 ई० से 1504 ई० तक के लगभग 50 अभिलेखों में इस गच्छका नामोल्लेख मात्र मिलता है, किन्तु इस गच्छ का उद्भव कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुआ तथा आचार विषयक इनकी मान्यताएं क्या थीं? . इत्यादि प्रश्न पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में अनुत्तरित हैं। 30. नागेन्द्र गच्छ : __ इस गच्छ की उत्पत्ति नागेन्द्र कुल से हुई थी, ऐसा माना जाता है। इस गच्छ का उल्लेख 1238 ई० से 1560 ई. तक के लगभग 20 मूर्तिलेखों में हुआ है। इस गच्छ का उल्लेख करने वाला कोई साहित्यिकसाक्ष्य उपलब्ध नहीं है, इसलिए इस गच्छ के विषय में भी पर्याप्त जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 31. चैत्रगच्छः इस गच्छ का उल्लेख 1243 ई० से 1535 ई. तक के 20 मूर्तिलेखों में मिलता है। धनेश्वरसूरि इस गच्छ के आदिम आचार्य माने जाते हैं। इस गच्छ से कई अवान्तर शाखाओं का जन्म हुआ, जैसे-भर्तृपुरीय शाखा, धारणपद्रीय शाखा, चर्तुदशीय शाखा, चान्द्रसामीय शाखा, सलषणपुरा शाखा, कंबोइया शाखा, अष्टापद शाखा तथा शार्दूल शाखा आदि। 1. चन्द्रप्रभसागर-महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० 449-- 450 2. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, पृ० 47-50 3. (क) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, पृ० 46-47 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 226 4. (क) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 106, 67, 17, 37, 213, 367 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 224 ...