________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 97 के श्रमण-श्रमणी भो आचार्य हस्तीमल जी म. सा. के नेतृत्व में श्रमण संघ में सम्मिलित हो गये थे, किन्तु कालान्तर में श्रमण संघ की आचारगत मान्यताओं से असहमत होकर जब कुछ सम्प्रदायों ने अपने पूर्व सम्प्रदायों को पुनर्जीवित किया तो आचार्य हस्तीमल जी म. सा. ने भी नवगठित श्रमण संघ से अलग होकर अपनी पूर्व परम्परा ( रत्नवंशीय ) को ही पुनर्जीवित किया। रत्नवंशीय परम्परा में इस समय लगभग 50 संत-सतियांजी हैं। रत्नवंशीय परम्परा के आदि प्रवर्तक आचार्य कुशलो जी माने जाते जाते हैं, किन्तु इनके बारे में विस्तृत जानकारी का अभाव है। आचार्य कूशलो जी के पश्चात् इस संघ में आठ आचार्य हुए हैं-(१) आचार्य गुमानचंद जी म. सा., (2) आचार्य रतनचंदजी म. सा०, (3) आचार्य हमीरमल जी म०.सा., (4) आचार्य कजोडीमल जो म.सा. (5) आचार्य विनयचंद जी म. सा., (6) आचार्य शोभाचंद जी म. सा. (7) आचार्य हस्तीमल जी म. सा. तथा (8) वर्तमान आचार्य हीरामुनि जी। इस सम्प्रदाय के सप्तम पट्टधर आचार्य श्री हस्तीमल जी म. सा. प्रभावक आचार्य रहे हैं, उनका जन्म 1910 ई० में जोधपुर के पीपाड़ शहर में हुआ था तथा 10 वर्ष की आयु में दीक्षा और 20 वर्ष की आयु में आचार्य पद प्राप्त करके 61 वर्षों तक आप इस गरिमामय पद पर बने रहे थे। ई० सन् 1991 में 13 दिन के संथारे के साथ आपका महाप्रयाण हुआ था। 4. ज्ञानचन्द जी म० सा० का सम्प्रदाय : ___ यह सम्प्रदाय धर्मदास जी म० सा० को परम्परा से संबंधित है। ज्ञानचन्द जी म. सा. के बाद इस सम्प्रदाय में पं० समरथमलजी म. सा. संघ प्रमुख बने थे। इस सम्प्रदाय के वर्तमान संघ प्रमुख चम्पालाल जी म० सा० हैं। इस सम्प्रदाय को पंडित जी म. सा. के सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। इस सम्प्रदाय में वर्तमान में लगभग 320 संतसतियाँ जी हैं। 5. जयमल जो म० सा० का सम्प्रदाय : इस सम्प्रदाय के वर्तमान आचार्य श्री शुभचन्द्र जी म सा हैं। इस संप्रदाय में अभी लगभग 4. संत-सतियाँ जी हैं। इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी हम ज्ञात नहीं कर सके हैं।