________________ 102 : जैनधर्म के सम्प्रदाय ___संघ-नविलूर, मयूर, किचूर, कोशलनूर, गनेश्वर, गौड, श्रीसंघ, सिंह और परलूर संघ आदि। गण-बलात्कार, सूरस्थ, कालोन, उदार, योगरिय, पुन्नागवृक्ष मूलगण, पंकुर एवं देशियगण आदि / .. दिगम्बर सम्प्रदाय के मलसंघ के अन्तर्गत उल्लिखित इन विभिन्न उपसम्प्रदायों में से अधिकांश के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती है, किन्तु कुछ के सन्दर्भ में संक्षिप्त जानकारी इस रूप में ज्ञात होती है(i) देवगण: शिलालेखीय साक्ष्य के आधार पर मलसंघ की यह शाखा सबसे प्राचीन है। इस गण का प्राचीनतम उल्लेख 687 ई० के लक्ष्मेश्वर अभिलेख में हुआ है। इसके अतिरिक्त 729 ई० से 734 ई० तक के चार अन्य अभिलेखों में भी इस गण का उल्लेख मिलता है / 2 अभिलेखों में इस गण के निम्नलिखित आचार्यों के नाम भी उपलब्ध होते हैं पूज्यपाद उदयदेव, रामदेव, जयदेव, विजयदेव, अंकदेव, महादेव आदि / यहाँ हम देखते हैं कि इस गण के प्रायः सभी आचार्यों के नाम के अन्त में देव शब्द जुड़ा हुआ है। सम्भवतः इस गण में आचार्यों के नाम के अन्त में देव शब्द जोड़ने की परम्परा रही होगी। (ii) सेनगण: सेनगण का प्राचीनतम उल्लेख 821 ई० के एक ताम्रपत्र में मिलता है। इस ताम्रपत्र में इस गण की आचार्य परम्परा इस प्रकार उल्लिखित है-मल्लवादी, सुमति, पूज्यपाद और अपराजित। 903 ई० के एक अन्य शिलालेख में इस गण की गुरुपरम्परा दी गई है, जो इस प्रकार है-पूज्यपाद, कनकसेन, वीरसेन / इस गण की उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इनकी मान्यताएँ क्या थीं? इत्यादि जानकारियाँ अज्ञात हैं। 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 111 2. वही, क्रमांक 113, 114, 149, 193 3. यापनीय और उनका साहित्य, पृष्ठ 43 4. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 4, क्रमांक 55 5. वही, भाग 2, क्रमांक 137