________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 101 सित हुए हैं, किन्तु इस परंपरा में मूर्तिपूजक सम्प्रदाय का प्रभाव ही अधिक दिखाई देता है। अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय के रूप में इस परंपरा में एक मात्र तारण पन्थ का ही उल्लेख मिलता है। दिगम्बर परंपरा के विभिन्न उपसम्प्रदाय इस प्रकार हैं१. मूलसंघ : दिगम्बर परंपरा में मूलसंघ का विशिष्ट स्थान है। सर्वप्रथम हमें दक्षिण भारत में नोणमंगल की दो ताम्रपट्रिकाओं में मलसंघ का उल्लेख मिलता है। ये दोनों ताम्रपट्टिकाएँ क्रमशः ई० सन् 370 और ई० सन् 425 की मानी जाती हैं। इस प्रकार मलसंघ का उल्लेख हमें ईसा की चतुर्थ शताब्दी के उत्तरार्ध में मिल जाता है। 1100 ई० के एक अभिलेख के अनुसार यह संघ आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा स्थापित किया गया था, किन्तु यह अभिलेख पश्चात्वर्ती होने के कारण अविश्वसनीय लगता है। पट्टावली से प्राप्त जानकारी के अनुसार आचार्य माघनन्दी ने इस संघ की स्थापना की थी। मलसंघ का उल्लेख 1177 ई० से 1601 ई. तक के लगभग 25 अभिलेखों में हुआ है। कालान्तर में यह संघ भो कई अन्वयों, बलियों, गच्छों, संघों तथा गणों में विभक्त हो गया, जिनके नाम इस प्रकार हैं "-- अन्वय-कोन्डकुन्दान्वय, श्रीपुरान्वय, किन्तुरान्वय, चंद्रकवाटान्वय, 'चित्रकुटान्वय आदि। - बलि-इनसोगे या पनसोगे, इंगुलेश्वर एवं वाणद बलि आदि / गच्छ-चित्रकूट, होन्तगे, तगरिल, होगरि, पारिजात, मेषपाषाण, तित्रिणीक, सरस्वती, पुस्तक तथा वक्रगच्छ आदि / 1. (क) “मूलसंधानुष्ठिताय" -जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 90 (ख) “मूलसंधेनानुष्ठिताय" -वही, भाग 2, क्रमांक 94 2. वही, भाग 1, क्रमांक 55 3. इण्डियन इन्टिक्वेरी, 20 पृ० 341; उद्धृत-मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृष्ठ 90 4. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 228 5. चौधरी, गुलाबचन्द्र-दिगम्बर जैन संघ के अतीत की झांकी . उद्धृत-मिक्ष स्मृति ग्रन्थ, पृ० 295